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राष्ट्रकूटों का वंश दक्षिण और लाट (गुजरात) पर राज्य करने वाले राष्ट्रकूटों के समय के करीब ७५ लेख और दानपत्र मिले हैं। इनमें से केवल ८ दानपत्रों में इन्हें यदुवंशी लिखा है। (१) उपर्युक्त ८ दानपत्रों में से पहला राष्ट्रकूट अमोघवर्ष प्रथम का, श० सं• ७८२ (वि० सं० ११७ ई० स० ८६०) का है। उसमें लिखा है:"तदीयभूपःयतयादवान्वये"
(ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा० ६, पृ. २६) दूसरा इन्द्रराज तृतीय का, श० सं० ८३६ (वि० सं० ०७१-ई० स० ६१४ ) का है। उसमें इनके वंश का उल्लेख इसप्रकार है:"तस्माद्वंशो यदूनां जगति स वृधे"
(जर्नल बॉम्बे एशियाटिक सोसाइटी, भा० १८, पृ. २६१) तीसरा श• सं० ८५२ (वि० सं० ६८७ ई. स. ६३० ) का, और चौथा श• सं० ८५५ (वि. सं० १६०ई० स० ६३:) का है । ये दोनों गोविन्दराज (चतुर्थ) के हैं। इनमें इनके वंश के विषय में इसप्रकार लिखा है:
“वंशो बभूव भुवि सिन्धुनिभो यदूनाम् ।" (ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा० ७, पृ. ३६; और इण्डियन ऐगिटक्केरी, भा० १२, पृ. २४९)
पांचवाँ श० सं० ८६२ (वि० सं० ६६७-ई० स० ६४०) का; और कठा. श. सं० ८८० (वि० सं० १०१५-ई. स. १५८) का है। ये कृष्णराज (तृतीय) के हैं। इनमें भी इनको यदुवंशी लिखा है:___“यदुवंशे दुग्धसिंधृपमाने"
(एपिग्राफिया इण्डिका, मा० ५ पृ० १६२; और भा० ४, पृ० १८१) सातवाँ कर्कराज द्वितीय का, श० सं० ८६४ (वि० सं० १०२९ ई. स. ९७२) का है। इसमें भी उपर्युक्त बातका ही उल्लेख है:
"समभूद्धन्यो यदोरन्वयः।” (इण्डियन ऐण्टिक्केरी, भा० १२, पृ० २६४) आठयां रद्दराज का, श० सं० १३० (वि० सं० १०६५ ई० स० १०.८) का है। इसमें भी इनका यदुवंशी होना लिखा है:"शोऽपूर्वोस्तीह वंशो यदुकुलतिलको राष्ट्रकूटेश्वराणाम्"
(एपिग्राफिया इण्डिका, भा० ३, पृ. २६८)
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