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राष्ट्रकूटों का उत्तर से दक्षिण में जाना
इस बात की पुष्टि दक्षिण के सोलंकी राजा राजराज के, ३२ वें राज्य वर्ष ( श० स० १७५ = वि० सं० १९११० ई० स० १०५३) के, येवूर से मिले, दानपत्र से भी होती है । उसमें लिखा है कि, राजा उदयने के बाद उस के वंश के ५६ राजाओं ने अयोध्या में राज्य किया था, और उनमें के अन्तिम राजा विजयादित्य ने सोलंकियों के दक्षिणी राज्य की स्थापना की थी। इसके बाद उसके १६ वंशजों ने वहां पर राज्य किया । परन्तु अन्त में उस राज्य पर दूसरे वंशका अधिकार होगया । यहां पर दूसरे वंश से राष्ट्रकूट वंशका ही तात्पर्य है; क्योंकि सोलंकियों के, मीरज से मिले, श० सं० १४६ के और येवूर से मिले, श० सं० ११९ के, ताम्रपत्रों में जयसिंह का, राष्ट्रकूट इन्द्रराज को जीतकर, फिर से चालुक्य वंश के राज्य को प्राप्त करना लिखा है ' ।
इस जयसिंह का प्रपौत्र कीर्तिवर्मा वि० सं० ६२४ में राज्य पर बैठा था । इससे उसका परदादा - जयसिंह विक्रम की छठी शताब्दी के उत्तरार्ध में रहा होगा । इन प्रमाणों पर विचार करने से प्रकट होता है कि, विक्रम की छठी शताब्दी में वहां पर ( दक्षिण में ) राष्ट्रकूटों का राज्य था । साथ ही यह भी अनुमान होता है कि, जिस समय सोलंकियों का राज्य अयोध्या में था, उसी समय उनके पूर्वज का विवाह कन्नौज के राष्ट्रकूट राजा की कन्या से हुआ होगा ।
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( १ ) उक्त दानपत्र में उदयन का ब्रह्मा की सैंतालीसवीं पीढी में होना लिखा है ।
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(२)
भूयश्चुलुक्य कुलवल्लभराजलक्ष्मीम् ।"
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'बभार
(इण्डियन ऐरिटक्केरी, भा० ८, पृ० १२,)
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