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राएकटों का इतिहास सोलंकी राजा त्रिलोचनपाल के, सूरत से मिले, श० सं० १७२ ( वि० सं० ११०७ ई० स० १०५१ ) के, ताम्रपत्र से प्रकट होता है कि, सोलंकियों के मूलपुरुष चालुक्य का विवाह कन्नौज के राष्ट्रकूट राजा की कन्या से हुआ था । इससे ज्ञात होता है कि, राष्ट्रकूटों का राज्य पहले कन्नौज में भी रहा था, और इसके बाद छठी शताब्दी के करीब, इन्होंने दक्षिण के सोलंकियों के राज्य पर अधिकार करलिया था।
(१) समादियर्थसंसिद्धौ तुष्टः स्रष्टाऽब्रवीच्चतम् ॥५॥
कान्यकुब्जे महाराज ! राष्ट्रकूटस्य कन्यकाम् । लब्ध्वा सुखाय तस्यां त्वं चौलुक्याप्नुहि संततिम् ॥ ६ ॥
(इण्डियन ऐगिटक्केरी भा० १२, पृ. २०१) (३) मिस्टर जे. डब्ल्यु. वाट्सन ( पोलिटिकल सुपरिन्टेन्डेन्ट, पालनपुर ) लिखते हैं कि,
फौजपति राठोड़ श्रीपत ने, संवत् १३६ को मंगसिर मुदि ५ बृहस्पतिवार को, अपने राजतिलकोत्सव के समय, उत्तरी गुजरात के १६ गांव चिबदिया ब्राह्मणों को दान दिवे थे। इनमें से एटा नामक गांव अबतक उस वंश के ब्राह्मणों के अधिकार में चला माता है । इसके मागे वह लिखते हैं कि, पहले के अरब भूगोल वेत्तामों ने कसोज की सरहद को सिन्ध से मिला हुआ लिखा है; मलमसऊदी ने सिन्ध का कनौज नरेश के राज्य में होना प्रकट किया है; और गुजरात के मुसलमान इतिहास लेखकों ने करीब नरेश को ही गुजरात का मधिपति माना है।
(इण्डियन ऐण्टिक्केरी, मा. ३,०४१) यहां पर मिस्टर वाट्सन के लेख को उद्धृत करने का कारण केवल यह प्रकट करना है कि, राष्ट्रकूटों का राज्य पहले भी कलौन में रह चुका था, और उस समय भी इनका प्रताप खूब बढ़ा चढ़ा था।
श्रीपत के विषय में हम केवल इतना कह सकते हैं कि, वह शायद कनौज के राठोड़े राज घराने का होने से ही “कनौजेश्वर" महाता था। सम्भव है, जिस समय लाट देश के राजा भुवराज ने कन्नौज के प्रतिहार राजा भोजदेव को हराया था, उस समय उस (ध्रुपराज ) ने श्रीपत के पिता को राष्ट्रकूट समझ नौज का कुछ प्रदेश दिलवा दिया हो, और बाद में पिता के मरने और अपने गद्दी पर बैठने के समय बीपत ने यह दानपत्र लिखवाया हो । एटा गाँव का कनौज के रागों द्वारा दिया जाना 'बॉम्बे गजेटियर' (भाग १, पृ. ३२१) में भी लिखा है।
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