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राष्ट्रकूटों का उत्तर से दक्षिण में जाना एकतो पहले लिखे अनुसार, डाक्टर हुल्शं ( Hultzsch ) अशोक के लेखों में उल्लिखित “रठिकों" या "रट्रिकों' (रष्ट्रिकों), और महाभारत के समय के (पंजाब के) आरट्टदेश वासियों को एकही मानते हैं । ये आरट्ट लोग सिकन्दर के समय तक भी पंजाब में विद्यमान थे। दूसरा अशोक की मानसेरा, शाहबाजगढ़ी ( उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रदेश ), गिरनार ( जूनागढ़ ), और धवली ( कलिङ्ग) से मिली धर्माज्ञाओं में, काम्बोज और गान्धार के बादही राष्ट्रिकों का नाम मिलता है । इससे प्रकट होता है कि, राष्ट्रकूट लोग पहले भारत के उत्तर-पश्चिमी प्रदेश में ही रहते थे, और बाद में वहीं से दक्षिण की तरफ़ गये थे । डाक्टर फ्लीट भी इस मत-से पूर्ण सहमत हैं।
(१) कॉर्पस इन्सक्रिप्शनम् इण्डिकेरम् , भा० १ पृ० ५६ (२) यद्यपि राष्ट्रक्टों के कुछ लेखों में इन चन्द्रवंशी लिखा है, तथापि वास्तव में ये
सूर्यवंशी ही थे। ( इस पर प्रागे स्वतन्त्ररूप से विच र किया जायगा।)
मारवाड़ नरेश अपने को सूर्यवंशी और श्री रामचन्द्र के पुत्र कुश के वंशज मानते हैं । 'विष्णुपुराण' में सूर्य के वंशज इक्ष्वाकु से लेकर रामचन्द्र तक ६१ राजाओं के नाम दिये हैं, और रामचन्द्र से सूर्यवंश के अन्तिम राजा सुमित्र तक ६ • नाम लिखे हैं । इस प्रकार इक्ष्वाकु से सुमित्र तक कुल १२१ (और 'भागवत' में शायद कुल १२५) राजाओं के नाम हैं। पुराणों से इसके बाद के इस वंश के राजाओं का पता नहीं चनता । ( पुराणों के मतानुसार सुमित्र का समय आज मे करीब ३...(१) वर्ष पूर्व था।)
'वाल्मीकीयरामायण' के उत्तर काण्ड में लिखा है कि, श्री रामचन्द्र के भाई भरत ने गन्धर्वो ( गान्धार वालों ) को जीता था। इसके बाद उसके दो पुत्रों में से तक्षने वहां पर ( गांधार प्रदेश में ) तनशिला और पुष्कल ने पुष्कलावत नाम के नगर बसाये। तक्षशिला को आजकल टैक्सिला कहते हैं । यह नगर हसन अब्दाल से दक्षिण-पूर्व और रावलपिण्डी से उत्तर-पश्चिम में था। इसके खंडहर १२ मील के घेरे में मिलते हैं।
पुष्कलायत पश्चिमोत्तर की तरफ पेशावर के पास था। यह स्थान इस समय चारसादा के नाम से प्रसिद्ध है। - - • -
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