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परिशिष्ट
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ही देहली पर अधिकार कर लिया था । यह बात उसके, देहली की फीरोज़ - शाह की लाट पर खुदे, वि. सं. १२२० ( ई. स. १९६३ ) के लेख से सिद्ध होती है । ऐसी स्थिति में सोमेश्वर का अनंगपाल की मदद में देहली जाना कैसे सम्भव हो सकता है? इनके अतिरिक्त चौहान पृथ्वीराज के समय बने 'पृथ्वीराजविजय' महाकाव्य में पृथ्वीराज की माता का नाम कमलावती के स्थान पर कर्पूरदेवी लिखा है, और उसी में उसे तँवर अनंगपाल की पुत्री न बतला कर त्रिपुरि के हैहय वंशी राजा की कन्या बतलाया है । इसी प्रकार 'हम्मीर महाकाव्य ' में भी इसका नाम कर्पूरदेवी ही लिखा है। 'रासो' के कर्ता ने अपने चरित - नायक पृथ्वीराज का जन्म वि. सं. १११५ में लिखा है । परन्तु वास्तव में इसका जन्म वि. सं. १२१७ ( ई. स. ११६० ) के करीब अथवा कुछ बाद हुआ होगा; क्योंकि वि. सं. १२३६ ( ई. स. ११७९ ) के करीब, इसके पिता की मृत्यु के समय, यह छोटा था, और इसीसे राज्यका प्रबन्ध इसकी माता ने अपने हाथ में लिया था ।
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पृथ्वीराज का मंडोर के प्रतिहार राजा नाहड़राव की कन्या से विवाह करना भी असम्भव कल्पना ही है; क्योंकि नाहड़राव का वि. सं. ७१४ के करीब (अर्थात् पृथ्वीराज से करीब ५०० वर्ष पूर्व ) विद्यमान होना, उससे दसवें राजा, बाउक के वि. सं. ८९४ के लेख से प्रकट होता है । वि. सं. १९८६ और १२०० के बीच किसी समय तो चौहान रायपाल ने, मंडोर पर अधिकार कर, वहां के प्रतिहार - राज्य की समाप्ति कर दी थी । चौहान रायपाल के पुत्र सहजपाल के, मंडोर से मिले, लेख से वि. सं. १२०० के करीब वहाँ पर उस ( सहजपाल ) का अधिकार होना सिद्ध होता है । इसके अतिरिक्त कन्नौज के प्रतिहारों की
( 1 ) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग १६, पृ. २१८; और भारत के प्राचीन राजवंश, भा. १, पृ. २४४ ।
( २ ) जर्नल रायल एशियाटिक सोसाइटी, ( १६१३) पृ. २७५; और भारत के प्राचीन राजवंश, भा. १, पृ. २४६ ।
(३) 'रासो' में दिये पृथ्वीराज के पूर्वजों के नाम भी अधिकतर अशुद्ध ही हैं ।
( ४ ) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा. १८, पृ. ६५
(५) आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया रिपोर्ट, ( १६०६-१० ) पृ. १०२-१०३
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