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राष्ट्रकूटों का इतिहास रहने के कारण, इन बातों पर ध्यान देने का मौका ही न मिला। इसी से उस के राज्य का सारा प्रबन्ध धीरे-धीरे शिथिल पड़ गया । यह समाचार सुन शहाबुद्दीन ने देहली पर फिर चढ़ायी की । पृथ्वीराज भी सेना लेकर उसके मुकाबले को चला । इस युद्ध में पृथ्वीराज का बहनोई मेवाड़ का महाराणा समरसिंह भी पृथ्वीराज की तरफ से लड़ कर मारा गया । अन्त में पृथ्वीराज के कुप्रबन्ध के कारण शहाबुद्दीन विजयी हुआ, और पृथ्वीराज पकड़ा जाकर गजनी पहुँचाया गया । इसके बाद स्वयं शहाबुद्दीन भी गजनी पहुँच पृथ्वीराज के तीर से मारागयों, और कुतुबुद्दीन उसका उत्तराधिकारी हुआ । यह समाचार सुनतेही पृथ्वीराज के पुत्र रैणसी ने, पिता का बदला लेने के लिए, लाहौर के मुसलमानों पर हमला किया, और उन्हें वहाँ से मार भगाया । इस पर कुतुबुद्दीन रैणसी पर चढ़ आया । युद्ध होने पर रैणसी मारा गया, और कुतुबुद्दीन ने देहली से आगे बढ़ कन्नौज पर चढ़ायी की । इसकी सूचना मिलते ही जयचन्द भी मुक़ाबले को पहुँचा । परन्तु अन्त में जयचन्द वीरता से लड़कर मारागया, और मुसलमान विजयी हुए।"
यह सारी की सारी कथा ऐतिहासिक कसौटी पर खरी नहीं ठहरती । इसमें जिस कमधज्जराय का उल्लेख है, उसका पता अन्य किसी भी इतिहास से नहीं चलता । इसी प्रकार जयच्चन्द्र के पिता का नाम विजयपाल न होकर विजयचन्द्र था; और वह (विजयचन्द्र) विक्रम की बारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में न होकर, तेरहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में था । यह बात उसकी वि. सं. १२२४, और १२२५ की प्रशस्तियों से प्रकट होती है । फिर यद्यपि अब तक अनंगपाल के समय का ठीक ठीक निश्चय नहीं हुआ है, तथापि इतना तो निर्विवाद कहा जा सकता है कि, सोमेश्वर से पूर्व के तीसरे राजा विग्रहराज (वीसलदेव) चतुर्थने
- ---...-- (1) पृथ्वीराज और चन्दबरदायी ने भी इसी समय अपने प्राण त्याग किये थे। रासो' के
अनुसार पृथ्वीराज की मृत्यु ४३ वर्ष की अवस्था में हुई थी। इसलिए यह घटना
वि० सं० १११८ में हुई होगी। (२ । ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ८, परिशिष्ट १, पृ. १३; और भारत के प्राचीन
राजवंश, भा० ३, पृ. १०६-...
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