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राष्ट्रकूटों का इतिहास शासक हुआ, और उसके आत्मीय, और बन्धुगण खोरै (शम्साबांद) (फर्रुखाबाद जिले) की तरफ़ चले गये । परन्तु कुछ दिन बाद जब हरिश्चन्द्र के अधिकार में बचे प्रदेश पर भी सुलतान शम्सुद्दीन अल्तमश ने चढाई की, तब उस हरिश्चन्द्र ( बरदायीसेनें ) के पुत्रों ने पहले खोर और फिर महुई में जाकर निवास किया ।
(1) रामपुर के इतिहास से ज्ञात होता है कि, जिस समय शम्सुद्दीन ने खोर पर माक्रममा
किया, उस समय जजपाल ने उसकी अधीनता स्वीकार कर वहीं निवास किया। परन्तु उसका भाई प्रहस्त ( वरदायी सेन) भागकर महई (फर्रुखाबाद जिले ) की तरफ चला गया। इसी गड़बड़ में इनके कुछ बान्धव नेपाल की तरफ़ भी चले गये थे। इसके बाद जजपाल के वंशज खोर को छोड़ कर उसेत (ज़िला बदायूं ) में
जा रहे । सम्भव है बदायूं के लेख वाला लखनपाल भी, उस समय, वहीं सामन्त के हैसियत से रहता हो; परन्तु जब वहां पर भी मुसलमानों का हमला हुमा, तब वे
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लोग वहां से बिलसद की तरफ़ चले गये। इसके बाद जजपाल के वंशज रामराय (रामसहाय) ने, एटा जिले में, रामपुर बसाकर वहां पर अपना नया राज्य कायम किया । खिम सेपुर (फर्रुखाबाद जिले) के राव भी अपने को उसी के वंशज बतलाते हैं। इसी प्रकार सुरजई मौर सरौढा ( मैनपुरी जिले ) के चौधरी भी जजपाल के ही वंशज माने जाते हैं। कहते हैं कि, जयश्चन्द्र के भाई का नाम माणिकचन्द्र (माणिक्यचन्द्र ) था । मांडा और विजेपुर (मिरज़ापुर जिले ) के शासक अपने को माणिकचन्द्र के पुत्र गाढण के वंशज मानते हैं। इसी प्रकार गाजीपुर की तरफ के और भी कई छोटे
आगीरदार अपने को गाडण के वंशज बतलाते हैं। (२) शम्सुद्दीन ने, वि० सं० १२७० में खोर का नाम बदल कर अपने नाम पर शम्साबाद
रख दिया था । (३) यह भी सम्भव है कि बरदायीसेन हरिश्चन्द्र का छोटा भाई हो ।
* 'फतेहगढ नामा' की, वि० सं० १६०६ (ई. स. १८४४) की, छपी पुस्तक में इसका
नाम हरसू लिखा है। सम्भव है हरसू और प्रहस्त ये दोनों हरिश्चन्द्र के नाम
के रूपान्तर ही हों। (1) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा• १, पृ० ६४ (1) कहीं कहीं इस घटना का. समय वि. सं. १२८० लिखा है।
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