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कन्नौज के गाहड़वाल
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जयञ्चन्द्र के समय के, वि. सं. १२३२ के, पूर्वोक्त दो ताम्रपत्रों में से पहले से ज्ञात होता है कि, उस ( जयचन्द्र ) ने, अपने पुत्र हरिश्चन्द्र के " जातकर्म" संस्कार पर, अपने कुल गुरु को वडेसर नामक गांव दिया था; और दूसरे से प्रकट होता है कि, उस ( जयचन्द्र ) ने, उस ( हरिश्चन्द्र) के जन्म के २१ वें दिन (वि. सं. १२३२ की भ्राद्रपद शुक्ला १३ = ३१ अगस्त सन् ११७५ को) उसके " नामकरण" संस्कार पर, हृषीकेश नामक ब्राह्मण को दो गांव दिये थे ।
हरिश्चन्द्र के समय की दो प्रशस्तियां मिली हैं । इनमें का दानपत्रे वि. सं. १२५३ ( ई. स. ११९६ ) की पौष सुदी १५ को दिया गया था । इसमें इसकी उपाधियां इसके पूर्वजों के समान ही लिखी हैं: - 'परमभट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वर, परममाहेश्वर, अश्वपति, गजपति, नरपति, राजत्रयाधिपति, विविधविद्याविचारवाचस्पति आदि । इससे ज्ञात होता है कि, यह, राज्य का एक बड़ा भाग हाथ से निकल जाने पर भी, बहुत कुछ स्वाधीन राजा था ।
इसके समय का लेख भी वि. सं. १२५३ का ही है । यह बेलखेडा से मिला था । यद्यपि इसमें राजा का नाम नहीं लिखा है, तथापि इसमें "कान्यकुब्जविजयराज्ये” लिखा होने से श्रीयुत आर. डी. बैनरजी आदि विद्वान् इसे हरिश्चन्द्र के सयम का ही अनुमान करते हैं ।
पहले लिखे अनुसार जब शहाबुद्दीन के साथ के युद्ध में जयच्चन्द्र मारा गया, तब उसका पुत्र हरिश्चन्द्र कन्नौज और उसके आस पास के प्रदेशों का
( १ ) इनमें का पहला ताम्रपत्र कमौली गांव ( बनारस जिले ) से मिलाथा ( ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा० ४, पृ० १२७ ); और दूसरा सिहबर ( बनारस जिले ) से मिलाथा । ( इण्डियन ऐग्रिटक्केरी, भा० १८, पृ० १३० )
२ ) ऐपिग्राफिमा इण्डिका, भाग १०, पृ० १५
इस ताम्रपत्र का संवत् अक्षरों और भको दोनों में लिखा है । परन्तु भों में का इकाही का अङ्क पहले खोदे गये अङ्क को छील कर दुबारा लिखा गया मालूम होता है । श्रीयुत भार० डी० बेनरजी इसे १२५७ पढ़ते हैं । ( जर्नल बंगाल एशियाटिक सोसाइटी, भा० ७, नं० ११, पृ० ७६२ ) यदि यह ठीक हो तो पमही गांव के देने के ३ वर्ष बाद इस ताम्रपत्र का लिखा जाना सिद्ध होता है ।
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