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कन्नौज के गाहड़वाल
१५३ यहीं पर कुछ समय बाद हरिश्चन्द्र के छोटे पुत्र राव सीहा ने एक किला बनवाया था । परन्तु जब वहां पर भी मुसलमानों के आक्रमण प्रारम्भ हो गये, तब राव सीहो, अपने बड़े भाई सेतराम के साथ, द्वारका की यात्रा को जाता हुआ मारवाड़ में आ पहुँचा।
(१) इसके खंडहर वहां काली नदी के तट पर अब तक विद्यमान हैं; और लोग उन्हें
"सीहाराव का खेड़ा" के नाम से पुकारते हैं। (२) रामपुर के इतिहास में सीहा को प्रहस्त का पौत्र लिखा है; परन्तु मारवाड़ के
इतिहास में सीहा के पितामह का नाम वरदायीसेन मिलता है । इसलिए सम्भव है ये दोनों हरिश्चन्द्र के ही उपनाम हो । यह भी सम्भव है कि, जिस प्रकार जयचन्द्र की उपाधि "दलपंगुल" थी, उसी प्रकार हरिश्चन्द्र की उपाधि "वरदायीसेन"
(वरदायीसैन्य ) हो । ३) माईन-ए-अकबरी (भा॰ २, पृ० ५०७) में लिखा है कि, सीहा जयचन्द का भतीजा था । वह शम्साबाद में रहता था, भौर शहाबुद्दीन से लड़ कर कन्नौज में मारा गया था।
कर्नल टॅॉडने अपने राजस्थान के इतिहास में सीहा को एक स्थान पर जयचन्द्र का पुत्र ‘ऐनाल्स ऐण्ड ऐगिटक्विटीन ऑफ राजस्थान (भा. १, पृ० १०५ ); और दूसरी जगह भतीजा (भा॰ २, पृ. ६३०) लिखा है । परन्तु फिर तीसरी जगह सेतराम और सीहा दोनों को जयचन्द्र का पोता (भा॰ २, पृ. १४०) भी लिख दिया है ।
राव सीहा के वि• सं० १३३. के लेख में उसे सेतराम (सतेकंवर) का पुत्र लिखा है। परन्तु सौहा को सेतराम का छोटा भाई, और दत्तक पुत्र मान लेने से, जयचन्द्र से सौहा तक के समय के ठीक मिल जाने के साथ ही, इतिहास की वह गड़बड़ भी, ओ सीही के कहीं पर सेतराम का भाई, और कहीं पर पुत्र लिखा मिलने से पैदा होती है, मिट जाती है।
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