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राष्ट्रकूटों का इतिहास
नवसारी से मिले इन्द्र (तृतीय) के, श० सं० ८३६ ( वि० सं० २७१= ई० स० १४ ) के, ताम्रपत्र में अमोघवर्ष को “रट्टकुललक्ष्मी" का उदय करने वाला लिखा है ।
देवली के ताम्रपत्र में लिखा है कि, इस वंश का मूल पुरुष " रट्ट" था। उसका पुत्र “राष्ट्रकूट" हुआ । उसी के नाम पर यह वंश चला है ।
घोसूंडी (मेवाड़) के लेख में इस वंश का नाम “राष्ट्रवर्य" और नाडोल के ताम्रपत्र में राष्ट्रौर्डे लिखा है ।
"राष्ट्रकूट" शब्द में के "राष्ट्र" का अर्थ राज्य और "कूट" का अर्थ समूह, ऊँचा, या श्रेष्ठ होता है । इसलिए इस " राष्ट्रकूट " शब्द से बड़े या श्रेष्ठ राज्य का बोध होता है । यह भी सम्भव है कि, "राष्ट्र" के पहले " महा" उपपद लगाकर इस जाति से शासित प्रदेश का नामही "महाराष्ट्र" रक्खा गया हो ।
आजकल देश और भाषा के मेद से राष्ट्रकूट शब्द के और भी अनेक रूपान्तर मिलते हैं । जैसे:
( १ ) जर्नल बाम्बे ब्रांच रायल एशियाटिक सोसाइटी, भा० १८, १०२५७
( २ ) जर्नल बाम्बे ब्रांच रायल एशियाटिक सोसाइटी, भा० १८, पृ० २४३ - २५१; मौर ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा०५, पृ० १६२
(३) रह के वंश में राष्ट्रकूट का होना केवल कवि कल्पना ही मालूम होती है ।
(४) चौहान कीर्तिपाल का, वि० सं० १२१८ का, ताम्रपत्र ।
(५) जिस प्रकार मालव जाति से शासित प्रदेश का नाम मालवा, धौर गुर्जर जाति से शासित प्रदेश का नाम गुजरात हुआ, उसी प्रकार राष्ट्रकूट जाति से शासित प्रदेश, दक्षिण काठियावाढ का नाम सुराष्ट्र (सोरठ) और नर्मदा और माही नदियों के बीच के देश का नाम राट हुआ। तथा इसी राट को बाद में लोग लाट के नाम से पुकारने लगे । ( भारत का वह भाग जिसमें मलीराजपुर, झाबुआ आदि राज्य हैं शायद राठ कहाता है | ) ( गिरनार पर्वत से मिले स्कन्द गुप्त के लेख में भी सोरठ देश का उल्लेख है । )
इस प्रकार राष्ट्र ( राठ ), सुराष्ट्र (सोरठ), और महाराष्ट्र प्रदेश राष्ट्रकूटों की कीर्ति काही बोध कराते हैं ।
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