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राष्ट्रकूट उण्डिकवाटिका से राष्ट्रकूट राजा अभिमन्यु का एक दानपत्र मिला है। उसमें संवत् न होने से विद्वान् लोग उसे विक्रम की सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ का अनुमान करते हैं । उसमें लिखा है:
"ॐ स्वस्ति अनेकगुणगणालंकृतयशसां राष्ट्रकु (क) टा
ना (नां) तिलकभूतो मानांक इति राजा बभूव" - अर्थात्-अनेक गुणों से अलंकृत, और यशस्वी राष्ट्रकूटों के वंश में तिलकरूप मानाङ्क राजा हुआ।
इलोरा की गुफाओं के दशावतार वाले मन्दिर में लगे राष्ट्रकूट राजा दन्तिदुर्ग के लेख में लिखा है:
“नवेत्ति खलु कः क्षितौ प्रकटराष्ट्रकूटान्वयम् ।" अर्थात्-पृथ्वी पर प्रसिद्ध राष्ट्रकूट वंश को कौन नहीं जानता। - इसी राजा के, श० सं० ६७५ (वि० सं०८१०=ई० स० ७५३) के, दानप॑त्र में, और मध्यप्रान्त के मुलतइ गांव से मिले, नन्दराज के, श० सं० ६३१ ( वि० सं० ७६६ ई० स० ७०६ ) के ताम्रपत्र में भी इस वंश का उल्लेख राष्ट्रकूटवंश के नाम से ही किया गया है । इसी प्रकार और भी अनेक राजाओं के लेखों, और ताम्रपत्रों में इस वंश का यही नाम दिया है । परन्तु पिछले कुछ लेख ऐसे भी हैं, जिनमें इस वंश का नाम “र?" लिखा है । जैसे:
सिरूर से मिले अमोघवर्ष ( प्रथम ) के लेख में उसे “ट्टवंशोद्भव" कहाँ है ।
(१) जर्नल बाम्बे एशियाटिक सोसाइटी, भाग १६, पृ. ६० (२) कुछ लोग इस स्थान पर "राष्ट्रकूटानां" के बदले "त्रैकूटकानां" पढ़ते हैं । परन्तु यह
पाठ ठीक नहीं है। (३) केव टैम्पल्स इन्सक्रिप्शन्स, पृ० ६२; और पाकियालॉजिकल सर्वे, वैस्टर्म इण्डिया,
भा० ५, पृ. ८७ (४) इण्डियन ऐगिटक्केरी, भाग ११, पृ. १११ (५) इण्डियन ऐगिटक्केरी, भाग १८, पृ. २३४ (६ ) जिस प्रकार लौकिक बोल-चाल में “मान्यखेट" का संक्षिप्त रूप "माट”; (यादव)
"विष्णुवर्धन” का “वद्दिग;" और "चापोत्कट" (वंश ) का "चाप' होगया था, उसी
प्रकार "राष्ट्रकूट" (वंश) का भी "र" होगया हो तो प्राश्चर्य नहीं। (७) इण्डियन ऐगिटक्केरी, भाग १२, पृ० २१८
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