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राष्ट्रकूटों का इतिहास
डाक्टर हुल्श ( Hultzsch ) " रठिक" अथवा "रट्रिक" ( रष्ट्रिक ) शब्द से पंजाब के "आरट्टों" का तात्पर्य लेते हैं' । परन्तु यदि आरट्टदेशे की व्युत्पत्ति में - आसमन्तात् व्याप्ता रट्टा यस्मिन् स आरट्ट : " इस प्रकार " बहुव्रीहि" समास मानलिया जाय, तो एक सीमातक सारेही विद्वानों के मतों का समाधान हो जाता है । राष्ट्रकूटों के लेखों में उनकी जाति का दूसरा नाम " र " भी मिलता है । इसलिए राष्ट्रकूटों का पहले पंजाब में रहना, और फिर वहां से उनकी एक शाखा का दक्षिण में जाकर अपना राज्य स्थापन करना मान लेने में कोई आपत्ति नज़र नहीं आती।
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( १ ) कॉर्पस् इन्सक्रिप्शनम् इण्डिकेरम्, भा० १ पृ० ५६
भारत में " राठी " नाम से पुकारी जाने वाली पांच बोलियां हैं । ( लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इण्डिया, भा० १, खण्ड १ पृ० ४९८ ) इनमें शायद पूर्वी पंजाब में बोली जानेवाली बोलीही मुख्य है । ( लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इण्डिया, भा० १, खण्ड १, पृ० ६१० और ६६६ ) सर जार्ज ग्रीयर्सन ने वहां पर प्रचलित प्रवाद के अनुसार "राठी" का अर्थ कठोर दिया है । परन्तु वह अपने १३ जून १९३३ के पत्र में उसका सम्बन्ध राष्ट्र" शब्द से होना अङ्गीकार करते हैं । इसलिए सम्भव है पंजाब में स्थित राष्ट्रकूटों की भाषा होने से ही वह राठी नाम से प्रसिद्ध हुई होगी ।
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( २ ) महाभारत में " आरट्ट " देश का उल्लेख इस प्रकार दिया है:
पंचनद्यो वहन्त्येता यत्र पीलुवनान्युत । ३१ । शतद्रुश्च विपाशा च तृतीयैर वती तथा ।
चन्द्रभागा वितस्ता च सिन्धु षष्ठा बहिर्गिरेः । ३२ । भारट्टानाम ते देशाः
कर्ण पर्व, अध्याय ४३ )
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अर्थात्–१ सतलज, २ व्यासा, ३ रावी ४ चनाब, ५ झेलम, और ६ सिन्ध से सींचा जानेवाला पहाड़ों के बाहर का प्रदेश आरट्ट देश कहाता है । ( महाभारत युद्ध के समय यह देश शल्य के अधीन था ) बौधायन के धर्म और श्रौत सूत्रों में भारह देश को अनार्य देश लिखा है ।
( देखो क्रमश: प्रथम प्रश्न, प्रथम अध्याय; और १८ - १२–१३ )
वि० सं० से २६६ (ई० स० से ३२६ ) वर्ष पूर्व, आरहब लोगों ने बलूचिस्तान के करीब, सिकन्दर का सामना किया था । यह बात उस समय के लेखकों के ग्रंथों से प्रकट होती है
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