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कनौज के गाहड़वान बर्मदेव को हराकर उसके राज्य पर अधिकार करलिया था। इसी प्रकार इसने भोरों को जीतकर उनसे खोर छीन लिया था । ___ इसके समय के करीब १४ ताम्रपत्र, और दो लेख मिले हैं । इनमें का पहला ताम्रपत्र वि. सं. १२२६ ( ई. स. ११७०) का है । यह बडविह गांव से दिया गया था । इसमें इसके “राज्याभिषेक" का वर्णन है; जो वि. सं. १२२६ की प्राषाढ शुक्ला ६ रविवार ( ई. स. ११७० की २१ जून ) को हुआ था। दूसरा वि. सं. १२२८ ( ई. स. ११७२ ) का है । यह त्रिवेणी के सङ्गम (प्रयाग) पर दिया गया था। तीसरी वि. सं. १२३० (ई. स. ११७३ ) का है । यह वाराणसी (बनारस) से दिया गया था। चौथा वि. सं. १२३१ (ई. स. ११७४ ) का है । यह काशी से दिया गया था। इसमें की पिछली इकत्तीसवीं,
और बत्तीसवीं पंक्तियों से इस ताम्रपत्र का वि. सं. १२३५ (ई. स. ११७६ ) में खोदा जाना प्रकट होता है । ___ पांचवां वि. सं. १२३२ (ई. स. ११७५ ) का है । इसमें महाराजाधिराज जयचन्द्रदेव के पुत्र का नाम हरिश्चन्द्र लिखा है। इसी के "जातकर्म" संस्कार पर, बनारस में, इस ताम्रपत्र में लिखा दान दिया गया था। इसकी पिछली ३१ वी और ३२ वी पंक्तियों से इस दानपत्र का भी वि. सं. १२३५ (ई. स. ११७६ ) में खोदा जाना सिद्ध होता है । छठा ताम्रपत्र भी वि. सं. १२३२ (ई. स. ११७५ ) का ही है । इस में लिखा दान हरिश्चन्द्र के "नामकरण" संस्कार पर दिया गया था।
(१) इस का अन्तिम दानपत्र वि. सं. १२१९ ( ई. स. ११६३ ) का है, और इसके
उत्तराधिकारी परमर्दिदेव का पहला दानपत्र वि. सं. १२२३ ( ई. स. ११६.)का
है। इसलिए यह विजय इसने युवराज अवस्था में ही प्राप्त की होगी। (२) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा० ४, पृ० १२१ (३) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा० ४, पृ. १२२ (४) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ४, पृ० १२४ (१) ऐपियाफिया इगिडका, भाग ४, पृ० १२५ (९) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ४, पृ० १२७ (.) इण्डियन ऐगिटक्केरी, भाग १८, पृ. १३.
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