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राष्ट्रकटों का इतिहास 'पृथ्वीराजरासो' में इसका नाम विजयपाल लिखा है ।
७ जयचन्द्र
यह विजयचन्द्र का पुत्र था, और उसके बाद राज्य का स्वामी सुभा।
जिस दिन यह पैदा हुआ था, उसी दिन इसके दादा गोविन्दचन्द्र ने दशार्ण देश पर विजय पायी थी । इसीसे इसका नाम जैत्रचन्द्र ( जयन्तचन्द्र या जयचन्द्र ) रखा गया था। ___ वि. सं. १२२४ के, पूर्वोल्लिखित, विजयचन्द्र के दानपत्र से प्रकट होता है कि, यह पिता के जीतेजी ही युवराज बनादिया गया था । | नयचन्द्रसूरि कृत 'रम्भामञ्जरी नाटिका' की प्रस्तावना में लिखा है:
"अभिनवरामावतारश्रीमन्मदनवर्ममेदिनीदयितसाम्राज्यलक्ष्मी
करेणुकालानस्तम्भायमानबाहुदण्डस्य" अर्थात्-जिसके बाहुदण्ड मदनवर्मदेव की राज्यलक्ष्मी रूपी हथनी को बांधने के लिए स्तम्भरूप थे।
इससे प्रकट होता है कि, सम्भवतः इसने कालिंजर के चन्देल राजा मदन
(१) “जामो जम्मि दिणम्मि एस सुकिदी चन्दे जुए भाइणा
पतं तम्मि दसगणगेसु पबलं जं खप्पराणं बलम् । मितं मति पियामहेण पहुणा जैतंति नाम तमो
दिन-अस्स स प्रज्ज वेरिदलयो दिवो जयंतप्पह ॥" संस्कृतच्छाया
"जातो यस्मिन्दिने एष सुकृती चन्द्र युते ममिजिता प्राप्तं तस्मिन् दशार्णकेषु प्रबलं यत् सर्पराणां बलम् । जितं झटिति पितामहेन प्रभुणा जैवेति नाम ततः दत्तं यस्य स भद्य वैरिदक्षनः दृष्टः जैत्रप्रभुः ॥
श्रीभरतकुलप्रदीपाय श्रीक्षेत्रचन्द्रनरेश्वराय.."
(एम्भामंजरी नाटिका, पृ. २३-२४)
(१)
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