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कन्नौज के गाहड़वाल
६ विजयचन्द्र
यह गोविन्दचन्द्र का पुत्र, और उत्तराधिकारी था । इसको मल्लदेव भी
कहते थे ।
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इसके समय के दो ताम्रपत्र, और दो लेख मिले हैं । इनमें का पहला ताम्रपत्र वि. सं. १२२४ ( ई. स. ११६८ ) का है । इसमें इसकी उपाधि माहाराजा - घिराज, और इसके पुत्र जयच्चन्द्र की युवराज लिखी है । इसमें विजयचन्द्र के मुसलमानों पर विजय प्राप्त करने का उल्लेख भी है। दूसरा ताम्रपत्र वि. सं. १२२५ ( ई. स. ११६९ ) का है । इसमें भी पहले के समान ही इसका, 1 और इसके पुत्र का उल्लेख है ।
इसका पहला लेख वि. सं. १२२५ ( ई. स. ११६९ ) का है । इसमें इसके पुत्र का नाम नहीं है। दूसरी लेख भी वि. सं. १२२५ ( ई. स. ११६९) का ही है । यह महानायक प्रतापधवलदेव का है । इसमें विजयचन्द्र के एक नकली दानपत्र का उल्लेख है ।
यह राजा वैष्णवमतानुयायी था, और इसने विष्णु के अनेक मन्दिर बनवाये थे । इसकी रानी का नाम चन्द्रलेखा था । इस राजा ने अपने जीतेजी ही अपने पुत्र जयचन्द्र को, राज्य का कार्य सौंप, युवराज बनालिया था । इसकी सेना में हाथियों, और घोड़ों की अधिकता थी । जयच्चन्द्र के लेख में विजयचन्द्र का दिग्विजय करना भी लिखा है । परन्तु वि. सं. १२२० के चौहान विग्रहराज चतुर्थ के लेख में उस (विग्रहराज ) की विजय का वर्णन है । इसलिए यदि विजयचन्द्र ने कोई प्रदेश जीता होगा तो इसके पूर्व ही जीता होगा।
(१) रम्भामञ्जरी नाटिका, पृ० ६
( २ ) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ४, पृ० ११८
( ३ )
" भुवनदलन हेला हर्म्यहम्मीरनारीनयन जलदधाराघौतभूतोपताप”
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इससे प्रकट होता है कि, शायद इसने गज़नी के खुसरो से युद्ध किया था; क्योंकि खुसरो उस समय लाहौर में बस गया था ।
( ४ ) इण्डियन ऐण्टिकेरी, भा० १५, पृ० ७
(५) आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया रिपोर्ट, भा० ११, पृ० १२५ (६) जर्नल अमेरिकन ओरिएण्टल सोसाइटी, भाग ६, पृ०५४८ (७) इन मन्दिरों के भग्नावशेष जौनपुर में अबतक विद्यमान हैं । (८) भारत के प्राचीन राजवंश, भाग १, पृ० २४४
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