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राष्ट्रकूटों का इतिहास
सातवां, आठवीं, और नवौं वि. सं. १२३३ ( ई. स. ११७७ ) का है । दसवीं वि. सं. १२३४ ( ई. स. ११७७ ) का है । ग्यारहवीं, बारहवां, और तेरहवाँ वि. सं. १२३६ ( ई. स. ११८० ) का है । ये तीनों गङ्गातट पर के रण्डवै गांव से दिये गये थे । चौदहवीं वि. सं. १२४३ ( ई. स. ११८७ ) का है ।
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इसके समय का पहला लेख वि. सं. १२४५ ( ई. स. ११८९ ) का है । यह मेक्रोहड (इलाहबाद के पास ) से मिला है । इसके समय का दूसरा लेखें बुद्धगया से मिला है । यह बौद्ध लेख है, और इसमें भी इस राजा का उल्लेख है । इसमें के संवत् का चौथा अक्षर बिगड़ जाने से पढ़ा नहीं जाता । केवल अगले तीन अक्षर वि. सं. १२४x ही पढ़े जाते हैं ।
यह राजा बड़ा प्रतापी था, और इसकी सेना के बहुत बड़ी होने से ही
लोगों ने इसका नाम “दलपंगुलै” रखदिया था ।
(१) ऐपिया / कया इण्डिका, भाग ४, पृ० १२६ ( २ ) इण्डियन ऐरिटक्केरी, भाग १८, पृ० १३५
) इण्डियन ऐरिटक्केरी, भाग १८, पृ० १३७ ( ४ ) इण्डियन ऐरिटक्केरी, भाग १८, पृ० १३८ ( ५ ) इण्डियन ऐग्रिटक्केरी, भाग १८, पृ० १४० ( ६ ) इण्डियन ऐण्टिकेरी, भाग १८, पृ० १४१ (७) इण्डियन ऐरिटक्केरी, भाग १८, पृ० १४२ (८) इण्डियन ऐरिटक्केरी, भाग १५, पृ० १०
( ६ ) ऐन्यूअल रिपोर्ट ऑॉफ दि मार्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, ( ई. स. १६२११८२२ ), पृ० १२०-१२१.
(१०) प्रोसीडिंग्स ऑफ दि बंगाल एशियाटिक सोसाइटी, (१८८०), पृ० ७७
" मप्र तिमल प्रतापस्य श्रीमन्मल्लदेवतनुजन्मनः सतीमल्लिकाश्रीचन्द्रलेखाकुक्षिशुक्तिमुक्ता मणेः गङ्गायमुनास्रोतस्विनी यष्टिद्वयमन्तरेण रिपुमेदिनी दयितदत्तदैन्यसैन्यसागरवरं प्रचालयितुमत्तमत्वात्पङ्गुरितिप्राप्तगुरु विरुदस्य श्रीमज्जैत्रचन्द्रनरेश्वरस्य " ( रम्भामजरी नाटिका, पृ० ६ )
अर्थात् - सेनाकी विशालता के कारण गंगा और यमुना रूपी दो लकड़ियों की सहायता के बिना उसका परिचालन न हो सकने से 'पंगु' कहाने वाले जैत्रचन्द्र के इसी भवतरण से जयचन्द्र के पिता का दूसरा नाम ( या उपाधि ) मल्लदेव और माता का चन्द्रलेखा होना पाया जाता है !
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