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कन्नौज के गाहड़वाल गोविन्दचन्द्र के दानपत्रों की संख्या को देखने से अनुमान होता है कि, यह बड़ा प्रतापी और दानी राजा था । सम्भवतः कुछ समय के लिए यह उत्तरी हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा राजा होगया था, और बनारस पर भी इसी का अधिकार था ।
काश्मीर नरेश जयसिंह के मन्त्री अलङ्कार ने जिस समय एक बड़ी सभा की थी, उस समय इसने सुहल को अपना राजदूत बनाकर भेजा था ।
मङ्घकवि कृत 'श्रीकण्ठचरित' काव्य में इसका उल्लेख है:
"अन्यः स सुहलस्तेन ततोऽवन्द्यत पण्डितः । दूतो गोविन्दयन्द्रस्य कान्यकुब्जस्य भूभुजः ॥ १०२॥"
(श्रीकराठचरित, सर्ग २५) अर्थात् उसने, कान्यकुब्ज नरेश गोविन्दचन्द्र के दूत, पण्डित सुहल को नमस्कार किया। ____ यह गोविन्दचन्द्र भारत पर आक्रमण करनेवाले म्लेच्छों (तुर्को ) से लड़ा था, और इसने चेदि और गौड़देश पर भी विजय प्राप्त की थी। इसके नामके साथ लगी "विविधविद्याविचारवाचस्पति" उपाधि से ज्ञात होता है कि, यह विद्वानों का आश्रयदाता होने के साथ ही स्वयं भी विद्वान् था ।
इसी (गोविन्दचन्द्र ) की आज्ञा से इसके सान्धिविग्रहिक ( minister of peace and war ) लक्ष्मीधर ने 'व्यवहारकल्पतरु' नामक ग्रन्थ बनाया था । . इस राजा के तीन पुत्रों के नाम मिलते हैं:-विजयचन्द्र, राज्यपाल, और आस्फोटचन्द्र ।
वह भी बौद्धमत की महायान शाखा की अनुयायिनी थी। कुछ लोग कुमारदेवी का ही दूसरा नाम वसन्तदेवी अनुमान करते हैं । सन्ध्याकरनन्दी रचित 'रामचरित' में कुमारदेवी के नाना महण (मयन) को राष्ट्रकूटवंशी लिखा है । ( उपर्युक्त लेख में भी
गाहड़वाल वंश का उल्लेख है । ) (१) बनारस के पास से मिले २१ ताम्रपत्रों में से १४ ताम्रपत्र इसी के थे। (२) ये शायद लाहौर (पंजाब ) की तरफ़ से बढ़ने वाले तुर्क होंगे।
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