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राष्ट्रकूटों का इतिहास स. ११४४ ) का है; सैंतीसवाँ वि. सं. १२०१ ( ई. स. ११४६ ) का है; अडतीसवाँ वि. सं. १२०२ ( ई. स. ११४६ ) का है; उंचालीसवां वि. सं. १२०३ ( ई. स. ११४६ ) का है; और चालीसवां वि. सं. १२०७ ( ई. स. ११५० ) का है। ___ इसके समय का पहला लेखे ( स्तम्भलेख ) वि. सं. १२०७ (ई. स. ११५१ ) का है । यह हाथियदह से मिला है । इसमें इसकी रानी का नाम गोसल्लदेवी लिखा है।
इसके समय का इकतालीसवाँ ताम्रपत्र वि. सं. १२०० (ई. स. ११५१) का है । इसमें इसकी पटरानी गोसल्लदेवी के दिये दान का उल्लेख है । इससे यह भी प्रकट होता है कि, इस रानी को राज्य में हर तरह का मान प्राप्त था। बयालीसवाँ ताम्रपत्र वि. सं. १२११ ( ई. स. ११५४ ) का है।
इस प्रकार इसकी वि. सं. ११६१ (ई. सं. ११०४ ) से वि. सं. १२११ (ई. स. ११५४ ) तक की प्रशस्तियां मिली हैं। ___ गोविन्दचन्द्र की रानी कुमारदेवी का एक लेख सारनाथ से मिला है। यह कुमारदेवी पीठिका के छिकोरवंशी राजा देवरक्षित की कन्या थी, और इसने एक मन्दिर बनवा कर धर्मचक्रजिन को समर्पण किया था।
(१) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ५, पृ. ११५ (२) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ७, पृ. ६ (३) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ८, पृ. १५७ (४) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ८, पृ. १५६ (५) भाकिया लॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया रिपोर्ट, भाग १, पृ. ६ (६) कोलहार्स लिस्ट ऑफ इन्सक्रिप्शन्स ऑफ नॉर्दर्न इगिडया, पृ. १९, नं. १३.;
और ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा. ५, पृ. ११७ (0) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ४, पृ. ११६ (८) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग १, पृ. ३१०-३२८ (1) बह कुमारदेवी बौद्धमत को माननेवाली थी । नेपाल राज्य के पुस्तकालय में सुरक्षित
'प्रष्टसारिका ' नाम की हस्तलिखित पुस्तक में लिखा है:" श्रीमद्गोविन्दचन्द्रदेवप्रतापवशतः राज्ञी श्री प्रवरमहायानयायिन्याः
परमोपासिकाराशीवसन्तदेव्याः देयधर्मोयम् । " इस से ज्ञात होता है कि, गोविन्दचन्द्र की एक रानी का नाम वसन्तदेवी था, और
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