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सौन्दत्ति (धारवाड) के रट्ट (राष्ट्रकूट ) ११३ है। परन्तु जब तक इस बात का पूरा प्रमाण न मिल जाय तबतक इस विषय में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता । इसके दो पुत्र थे:-कार्तवीर्य, और मल्लिकार्जुन
१३ कार्तवीर्य चतुर्थ यह लक्ष्मीदेव प्रथम का बड़ा पुत्र था, और उसके बाद राज्य का स्वामी हुआ ।
इसके समय के ६ लेख, और एक ताम्रपत्र मिले हैं । इनमें का पहला, श. सं. ११२१ (गत ) (वि. सं. १२५७ ई. स. १२०० ) का, लेख संकेश्वर (बेलगाँव जिले ) से मिला है । दूसरी श. स ११२४ (वि. स. १२५८ ई. स. १२०१ ) का है । तीसरा और चौथर्थी श. सं. ११२६ ( गत) (वि. सं. १२६१ ई. स. १२०४ ) का है । पाँचवां श. सं. ११२७ ( वि. सं. १२६१ ई. स. १२०४ ) का है। उसमें इसको लटनूर का शासक लिखा है, और इसकी राजधानी का नाम वेणुग्राम दिया है । उसीमें इसके छोटे भाई युवराज मल्लिकार्जुन का नाम भी है ।
___ इसके समय का ताम्रपत्रं श. सं. ११३१ (वि. सं. १२६५ ई. स. १२०८) का है । उसमें भी इसके छोटे भाई युवराज मल्लिकार्जुन का नाम है ।
छठा लेख श. सं. ११४१ (वि. सं. १२७५ ई. स. १२१८ ) का है।
इसकी उपाधि महामण्डलेश्वर थी। इसकी दो रानियों में से एक का नाम एचलदेवी, और दूसरी का नाम मादेवी था ।
१४ लक्ष्मीदेव द्वितीय यह कार्तवीर्य चतुर्थ का पुत्र था, और उसके बाद गद्दी पर बैठा । इसके समय का, श. सं. ११५१ (वि. सं. १२०५ ई. स. १२२८) का, एक लेखं मिला है।
(१) कर्नदेश-इन्सक्रिपशन्स, भाग २, पृ. ५६१. (२) ग्रेहम्स-कोल्हापुर, पृ. ४१५, नं. ४ (३) कर्न-देश इन्सक्रिपशन्स, भाग २, पृ. ५७१ (४) कर्न-देश इन्सक्रिपशन्स, भा. २, पृ. ५७६ (५) जर्नल बाँबे एशियाटिक सोसाइटी, भाग १०,पृ. २२० (६) इण्डियन ऐगिटक्केरी, भाग १६, पृ. २४५ (५) जर्नल बॉब एशियाटिक सोसाइटी, भाग १०, पृ० २४० (८) जर्नल बाँबे एशियाटिक सोसाइटी, भाग १०, पृ. २६.
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