________________
११२
राष्ट्रकूटों का इतिहास
तृतीय का सामन्त रहा था, तथापि वि. सं. १२२२ ( ई. स. ११६५ ) के बाद किसी समय, सोलंकियों और कलचुरियों ( हैहयवंशियों ) की शक्ति के नष्ट हो जाने से, स्वतन्त्र बन बैठा । इसने अपने स्वतंत्र हो जाने पर ही चक्रवर्ती की उपाधि धारण की होगी ।
श. सं. ११०६ ( गत ) (वि. सं. १२४४ ई. स. ११८७ ) के एक लेख से ज्ञात होता है कि, उस समय कुंडि में, सोलंकी सोमेश्वर चतुर्थ के दण्डनायक, भायिदेव का शासन था । इससे अनुमान होता है कि, इन रट्टों को स्वाधीन होने में पूरी सफलता नहीं मिली थी ।
खानपुर ( कोल्हापुर राज्य ) से मिले, श. सं. १०६६ ( वत्तमान) (वि. सं. १२००=ई. स. १९४३ ) के, और श. सं. १०८४ ( गत ) ( वि. सं. १२१९ = ई. स. ११६२ ) के, लेखों में; तथा बेलगांव जिले से मिले, श. सं. १०८६ (वि. सं. १२२१ = ई. स. ११६४ ) के, लेखे में भी इस कार्तवीर्य का उल्लेख है ।
१२ लक्ष्मीदेव प्रथम
यह कार्तवीर्य तृतीय का पुत्र, और उत्तराधिकारी था । इसके लक्ष्मण, और लक्ष्मीधर दो नाम और भी मिलते हैं । इसकी स्त्री का नाम चन्द्रिकादेवी ( चन्दलदेवी ) था ।
हण्णिकेरि से, श. सं. ११३० (वि. सं. १२६५ ई. स. १२०१) का, एक लेखेँ मिला है । यह इसी के समय का प्रतीत होता है । यद्यपि इसके 1 बड़े पुत्र कार्तवीर्य चतुर्थ की श. सं. ११२१ से ११४१ तक की, और छोटे पुत्र मल्लिकार्जुन की ११२७ से ११३१ तक की प्रशस्तियों के मिलने से लक्ष्मीदेव प्रथम का श. सं. ११३० में होना साधारणतया असम्भव ही प्रतीत होता है, तथापि कन्न द्वितीय और कार्तवीर्य द्वितीय की तरह इन ( पिता और पुत्रों) का शासन काल भी एक साथ मान लेने से यह गड़बड़ दूर हो जाती
(१) बर्न - देश इन्सक्रिपशन्स, भाग २, पृ. ५४७-५४८ (२) इण्डियन ऐण्टिकेरी, भाग ४, पृ. ११६ (३) बॉम्बे गैज़ेटियर, भा. १५ खण्ड २, पृ. ५५६
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com