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सौन्दत्ति ( धारवाड ) के रट्ट (राष्ट्रकूट) १११ दूसरा लेखे श. सं. १००६ ( वि. सं. ११४४ ई. स. १०८७ ) का है । इसमें इसको सोमेश्वर के उत्तराधिकारी विक्रमादित्य छठे का महामण्डलेश्वर लिखा है।
तीसरा लेखे श. सं. १०४५ (वि. सं. ११८० ई. स. ११२३ ) का है । परंतु इस संवत् के पूर्व ही इसका पुत्र सेन द्वितीय राज्य का अधिकारी होचुका था।
कन्न द्वितीय, और कार्तवीर्य द्वितीय के लेखों को देखने से अनुमान होता है कि, ये दोनो भाई एक साथ ही शासन करते थे ।
१० सेन ( कालसेन ) द्वितीय यह कार्तवीर्य द्वितीय का पुत्र, और उत्तराधिकारी था। इसके समय का, श. सं. १०१८ ( वि. सं. ११५३ ई. स. १०६६ ) का, एक लेख मिला है । यह चालुक्य ( सोलंकी ) विक्रमादित्य छठे, और उसके पुत्र जयकर्ण के समय विद्यमान था । जयकर्ण का समय वि. सं. ११५६ ( ई. स. ११०२) से वि. सं. ११७८ ( ई. स. ११२१ ) तक माना जाता है। इसलिए इन्हीं के बीच किसी समय तक सेन द्वितीय भी विद्यमान रहा होगा। इस की स्त्री का नाम लक्ष्मी देवी था। ___इसके पिता के समय का श. सं. १०४५ (वि. सं. ११८० ई. स. ११२३ ) का लेख मिलने से अनुमान होता है कि, ये दोनों पिता, और पुत्र एक साथ ही अधिकार का उपभोग करते थे।
११ कार्तवीर्य (कम) तृतीय यह सेन ( कालसेन ) द्वितीय का पुत्र, और उत्तराधिकारी था। इसकी स्त्री का नाम पमलदेवी था। ___ इसके समय का एक टूटा हुआ लेखें कोन्नूर से मिला है। उस में इसकी उपाधियां महामण्डलेश्वर, और चक्रवर्ती लिखी हैं । इससे अनुमान होता है कि, यद्यपि पहले यह पश्चिमी चालुक्य ( सोलंकी) जगदेकमल द्वितीय, और तैलप
(1) जर्नल बाम्बे एशियाटिक सोसाइटी, भाग १०, पृ. १७३ (२) इण्डियन ऐगिटक्केरी, भाग १४, पृ. १६. (३) जर्नल बाम्बे एशियाटिक सोसाइटी, भा. १०, पृ. 18४ (४) माकिया लॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, भाग ३, पृ. १०३
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