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राष्ट्रकूटों का इतिहास इसके समय का, श. सं. १७० (वि. सं. ११०५ ई. स. १०४८) का, एक लेख मिला है । इसमें इसे पश्चिमी चालुक्य ( सोलंकी ) त्रैलोक्यमल्ल ( सोमेश्वर प्रथम ) का महासामन्त लिखा है । शायद इस के समय का, इसी संवत् का, एक टूटा हुआ लेख और भी मिला है।
७ सेन (कालसेन) प्रथम यह एरेग का पुत्र, और अपने चचा अङ्क का उत्तराधिकारी था । इसका विवाह मैललदेवी से हुआ था । इसके दो पुत्र थे:-कन, और कार्तवीर्य ।
८ कन्न ( कन्नकैर द्वितीय) यह सेन ( कालसेन ) प्रथम का पुत्र था, और उसके पीछे गद्दी पर बैठा। इसके समय की दो प्रशस्तियां मिली हैं। उनमें का ताम्रपत्र श. सं. १००४ (वि. सं. ११३६ ई. स. १०८२ ) का है । इसमें रहवंशी कन्न द्वितीय को पश्चिमी चालुक्य (सोलङ्की) राजा विक्रमादित्य छठे का महासामन्त लिखा है। इस से यह भी प्रकट होता है कि, कन ने भोगवती के स्वामी (भीम के पौत्र,
और सिन्दराज के पुत्र ) महामण्डलेश्वर मुञ्ज से कई गाँव ख़रीदे थे। यह मुञ्ज सिन्दवंशी था । इस वंश को नागकुल का भूषण भी लिखा है । ____ इसके समय का लेख श. सं. १००६ ( वि. सं. ११४४ ई. स. १०८७ ) का है। इसमें इस को महामण्डलेश्वर लिखा है ।
६ कार्तवीर्य द्वितीय यह सेन प्रथम का पुत्र, और कन द्वितीय का छोटा भाई था। इसको कट्ट भी कहते थे। इसकी स्त्री का नाम भागलदेवी ( भागलाम्बिका ) था ।
इसके समय के तीन लेख मिले हैं । इनमें का पहला सौन्दत्ति से मिला है । इसमें इसको पश्चिमी चालुक्य (सोलङ्की) सोमेश्वर द्वितीय का महामण्डलेश्वर, और लट्टलूर का शासक लिखा है । (१) जर्नल बॉम्बे एशियाटिक सोसाइटी, भाग १०, पृ. १७२ (२) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ३, पृ. ३०८ (३) जर्नल बॉम्बे एशियाटिक सोसाइटी, भाग १०, पृ. २८७ (1) जर्नल बाम्बे एशियाटिक सोसाइटी, भाग १०, पृ. २१३
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