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सौन्दत्ति (धारवाड) के रट्ट (राष्ट्रकूट)
२ कार्तवीर्य प्रथम यह नन्न का पुत्र, और उत्तराधिकारी था । इसका, श. सं. १०२ ( वि. सं. १०३७ ई. स. १८० ) का, एक लेखं मिला है । यह सोलंकी तैलप द्वितीय का सामन्त, और कूण्डि का शासक था । इस ( कूण्डि-धारवाड़) प्रदेश की सीमा भी इसी ने निर्धारित की थी। सम्भव है इसी ने शान्तिवर्मा से अधिकार छीनकर उस शाखा की समाप्ति करदी हो । इसके दो पुत्र थे:-दायिम, और कन्न ।
३ दायिम (दावरि) यह कार्तवीर्य प्रथम का पुत्र, और उत्तराधिकारी था।
४ कन्न (कन्नकैर) प्रथम यह कार्तवीर्य का पुत्र, और दायिम का छोटा भाई था; तथा अपने बड़े भाई दायिम का उत्तराधिकारी हुआ । इसके दो पुत्र थे:-एरेग, और अङ्क ।
५ एरेग ( एरेयम्मरस) यह कन प्रथम का पुत्र था, और उसके पीछे गद्दी पर बैठा । इसके समय का, श. सं १६२ ( वि. सं. १०१७ ई. स. १०४० ) का, एक लेख मिला है। इसमें इसे चालुक्य ( सोलंकी ) जयसिंह द्वितीय ( जगदेकमल्ल ) का महासामन्त, लट्टलूर का शासक, और "पंच महाशब्दों" से सम्मानित लिखा है। यह संगीत विद्या में निपुण था, और इसको “रट्टनारायण" भी कहते थे । इसकी ध्वजा में सुवर्ण के गरुड़ का निशान होने से यह "सिंगन गरुड़" कहाता था। इसकी सवारी के आगे “निशान" का हाथी रहता था, और दक्षिण के राष्ट्रकूटों की तरह इसके आगे भी "टिविलि" नामका बाजा बजा करता था ।
इसके पुत्र का नाम सेन ( कालसेन ) था।
यह कन प्रथम का पुत्र था, और अपने बड़े भाई एरेग का उत्तराधिकारी
हुधा।
(१) कीलहार्न्स लिस्ट ऑफ साउथ इण्डियन इन्सक्रिपशन्स, पृ. २६, नं. १४१ (२) इण्डियन ऐण्टिक्केरी, भा. १६, पृ. १६४
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