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राष्ट्रकूटों का इतिहास
होना सिद्ध होता है । परंतु इस ( पृथ्वीराम ) के पौत्र शान्तिवर्मा का श. सं. १०२ (वि. सं. १०३७ ई. स. १८० ) का लेख मिला है। इससे इस ( पृथ्वीराम ) के, और इसके पौत्र (शान्तिवर्मा ) के समय के बीच १०५ वर्ष का अन्तर आता है । यह कुछ अधिक प्रतीत होता है । इसलिए सम्भव है पृथ्वीराम का यह लेख पीछे से लिखवाया गया हो, और इसी से इसके समय में गड़बड़ हो गयी हो। ऐसी हालत में इसके समय राष्ट्रकूट राजा कृष्णराज द्वितीय का विद्यमान होना न मानकर कृष्णराज तृतीय का होना मानना ही ठीक मालूम होता है।
पृथ्वीराम जैन मतानुयायी था, और इसे वि. सं. ११७ ( ई. स. १४० ) के करीब महासामन्त की उपाधि मिली थी ।
३ पिट्टुग
यह पृथ्वीराम का पुत्र था, और उसके बाद उसका उत्तराधिकारी हुआ । इसने अजवर्मा को युद्ध में हराया था । इसकी स्त्री का नाम नीजिकब्बे था ।
४ शान्तिवर्मा
यह पिट्टुग का पुत्र, और उत्तराधिकारी था । इसका, श. सं. १०२ (वि. सं. २०३७ = ई. स. १८० ) का, एक लेख मिला है। इसमें इसे पश्चिमी चालुक्य ( सोलंकी ) तैलप द्वितीय का सामन्त लिखा है । इसकी स्त्री का नाम चण्डिकब्बे था ।
इसके बाद का इस शाखा का इतिहास नहीं मिलता है ।
( दूसरी शाखा )
१ नन्न
सौन्दत्ति के रट्ठों की दूसरी शाखा के लेखों में सब से पहला नाम यही
मिलता है ।
(१) जर्नल बॉम्बे एशियाटिक सोसाइटी, भा. १०, १. २०४
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