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सौन्दत्ति के रह (राष्ट्रकूट) [वि. सं. १३२ (ई. स. ८७५ ) के निकट से
वि. सं. १२८७ ( ई. स. १२३० ) के निकट तक ] पहले लिखा जाचुका है कि, चालुक्य (सोलंकी) नरेश तैलप द्वितीय ने मान्यखेट ( दक्षिण ) के राष्ट्रकूट राजा कर्कराज द्वितीय से राज्य छीन लिया था। इन दोनों राजाओं के लेखों से इस घटना का वि. सं. १०३० (ई. स. १७३) के बाद होना प्रतीत होता है। परन्तु वहीं से मिले अन्य लेखों से ज्ञात होता है कि, मुख्य राष्ट्रकूट राज्य के नष्ट हो जाने पर भी, उसकी शाखाओं से सम्बन्ध रखने वाले, राष्ट्रकूटों की जागीरें बहुत समय बाद तक विद्यमान थीं; और वे चालुक्यों ( सोलंकियों ) के सामन्त बनगये थे।
बम्बई प्रदेश के धारवाड़ प्रान्त में भी राष्ट्रकूटों की ऐसी दो शाखाओं का पता चलता है, जिन्होंने वहाँ पर अधिकार का उपभोग किया था। इनकी जागीर का मुख्य नगर सौन्दत्ति (कुन्तल-बेलगाँव जिले में ) था, और इनके लेखों में इनको रह ही लिखा है।
(पहली शाखा)
१ मेरड इस शाखा का सब से पहला नाम यही मिलता है।
२ पृथ्वीराम यह मेरड़ का पुत्र, और उत्तराधिकारी था। इसका, श. सं, ७९७ (वि. सं. १३२ ई. स. ८७५ ) का एक लेखें मिला है। उसमें इसकी जाति रट्ट लिखी है।
यह राष्ट्रकूट राजा कृष्णराज का सामन्त, और सौन्दत्ति का शासक था। इसके लेख में दिये संवत् से उस समय राष्ट्रकूट राजा कृष्णराज द्वितीय का विद्यमान
(1) जर्नल बॉम्बे एशियाटिक सोसाइटी, भाग १०, पृ. १६४
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