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राष्ट्रकूटों का इतिहास इसमें इसकी उपाघि महामण्डलेश्वर लिखी है । इसकी माता का नाम मादेवी था । ___इसके बाद की इस शाखा की किसी प्रशस्ति के न मिलने से अनुमान होता है कि, इसी समय के करीब इनके राज्य की समाप्ति होगयी थी, और वहाँ पर देवगिरि के यादव राजा सिंघण ने अधिकार करलिया था । यद्यपि इस घटना का समय वि. सं. १२८७ ( ई. स. १२३० ) के करीब अनुमान किया जाता है, तथापि इस समय के पहले ही कुंडि के उत्तर, दक्षिण, और पूर्व के प्रदेश लक्ष्मीदेव द्वितीय के हाथ से निकल गये थे। ___हरलहल्लि से मिले, श. सं. ११६० (वि. सं. १२९५ ई. स. १२३८) के, ताम्रपत्र में वीचण का रट्टों को जीतना लिखा है । यह वीचण देवगिरि के यादव राजा सिंघण का सामन्त था ।
सीताबलदी से, श. सं. १००८ (१००६) (वि. सं. ११४४ ई. स. १०८७ ) का, एक ताम्रपत्र मिला है । यह महासामन्त राणक धाडिभण्डक ( धाडिदेव ) का है । यह (धाडिभण्डक ) पश्चिमी चालुक्य ( सोलंकी) विक्रमादित्य छठे ( त्रिभुवनमल्ल ) का सामन्त था । इस ताम्रपत्र में धाडिभण्डक को महाराष्ट्रकूटवंश में उत्पन्न हुआ, और लटलूर से आया हुआ लिखा है । ___ खानपुर ( कोल्हापुर राज्य ) से, श. सं. १०५२ (वि. सं. ११८६ ई. स. ११२१ ) का, एक लेख मिला है । इस में रट्टवंशी महासामन्त अङ्किदेव का उल्लेख है । यह सोलंकी सोमेश्वर तृतीय का सामन्त था । परंतु धाडिभण्डक, और अङ्किदेव का उपर्युक्त रट्ट शाखा से क्या सम्बन्ध था इसका पता नहीं चलता है।
बहुरिबन्द ( जबलपुर ) से मिले लेखें में राष्ट्रकूट महासामन्ताधिपति गोलणदेव का उल्लेख है । यह कलचुरि ( हैहयवंशी ) राजा गयकर्ण का सामन्त था । यह लेख बारहवीं शताब्दी का है । परन्तु इससे गोलणदेव का किस शाखा से सम्बन्ध था यह प्रकट नहीं होता । (१) जर्नल बाम्बे एशियाटिक सोसाइटी, भाग १०, पृ. २६०; और कॉनॉलॉजी ऑफ
इण्डिया, पृ. १८२ (२) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ३, पृ० ३०५ (३) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ३, पृ. ३०५ (४) मार्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, भाग , पृ. ४.
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