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जाट (गुजरात) के राष्ट्रकूट
५ अकालवर्ष यह ध्रुवराज का पुत्र, और उत्तराधिकारी था । इसकी दो उपाधियां शुभतुङ्ग, और सुभटतुङ्ग मिलती हैं. । इसके, और दक्षिण के राष्ट्रकूटों के बीच भी मनोमालिन्य रहा था। इसके तीन पुत्र थे:-ध्रुवराज, दन्तिवर्मा, और गोविन्दराज ।
६ ध्रुवराज द्वितीय यह अकालवर्ष का पुत्र, और उत्तराधिकारी था । इसका, श. सं. ७८९ (वि. सं. १२४ ई. स. ८६७) का, एक ताम्रपत्रं मिला है। उसके 'दूतक' का नाम गोविन्दराज है । यह गोविन्द शुभतुङ्ग ( अकालवर्ष ) का पुत्र, और ध्रवराज द्वितीय का छोटा भाई था। ध्रवराज ने एक साथ चढायी करके आनेवाले गुर्जराजै, वल्लभ, और मिहिर को हराया था। यह मिहिर शायद कन्नौज का पड़िहार राजा भोजदेव ही होगा; जिसकी उपाधि मिहर थी । वल्लभ के साथ के युद्ध के उल्लेख से अनुमान होता है कि, शायद इसने मान्यखेट के राष्ट्रकूट-राजाओं की अधीनता से निकलने की कोशिशें की होगी।
ध्रुवराज ने ढोडि नामक ब्राह्मण को वेन्ना नाम का एक प्रान्त दान में दिया था। इसकी आय से उसने एक सत्र खोला था; जहां पर सदा ( सुभिक्ष और दुर्भिक्ष में ) हज़ारों ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता था। इस (ध्रुवराज ) का छोटाभाई गोविन्द भी, इसकी तरफ़ से, शत्रुओं से युद्ध किया करता था ।
(१) बेगुना से मिले, श०सं. ७८९ के, ताम्रपत्र में लिखा है कि, यद्यपि इसके दुष्ट सेवक
इससे बदल गये थे, तथापि इसने बल्लभ (अमोघवर्ष प्रथम ) की सेना से अपना
पतृकराज्य छीनलिया । (इण्डियन ऐपिटक्केरी, भाग १२, पृ० १८१) (२) इण्डियन ऐगिटक्केरी, भाग १२, पृ० १८१ (३) उस समय गुजरात का राजा चावड़ा क्षेमराज होगा (४) ऊपर उल्लेख किये, श. सं. ७८६ के, ताम्रपत्र से यह भी ज्ञात होता है कि, जिस
समय शत्रुमों ने इस पर चढ़ाई की थी, उस समय इसके बान्धव, और छोटा भाई तक भी इससे बदल गये थे।
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