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राष्ट्रकूटों का इतिहास ७ दन्तिवर्मा
यह अकालवर्ष का पुत्र, और ध्रुवराज द्वितीय का छोटा भाई था । तथा अपने बड़े भाई ध्रुवराज के मरने पर उसका उत्तराधिकारी हुआ ।
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इसके समय का, श. सं. ७८९ (वि. सं. १२४ = ई. स. ८६७) का, एक ताम्रपत्र मिला है । इस में इसकी उपाधियां - महासामन्ताधिपति, और अपरिमितवर्ष आदि लिखी हैं । इस ताम्रपत्र में लिखा दान एक बौद्ध विहार के लिए दिया गया था ।
ध्रुवराज द्वितीय के ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि, शायद इसके और ध्रुवराज के बीच मनोमालिन्य हो गया था । परन्तु दन्तिवर्मा के ताम्रपत्र में इस को अपने बड़े भाई ( ध्रुवराज ) का परमभक्त लिखा है । इसलिए जिस भाई से ध्रुवराज का मनोमालिन्य होना लिखा है वह सम्भवतः कोई दूसरा होगा । ८ कृष्णराज
यह दन्तिवर्मा का पुत्र था, और उसके पीछे राज्य का स्वामी हुआ । इसके समय का, श. सं. ८१० ( वि. सं. १४५ = ई. स. ८८८ ) का, एक ताम्रपत्रे मिला है । यह बहुत ही अशुद्ध है । कृष्णराज की उपाधियाँमहासामन्ताधिपति, अकालवर्ष आदि मिलती हैं।
इस (कृष्णराज ) ने वल्लभराज के सामने ही उज्जैन में अपने शत्रुओं को जीता था ।
कृष्णराज के बाद का इस शाखा का इतिहास नहीं मिलता है ।
मान्यखेट के राष्ट्रकूट राजा कृष्णराज द्वितीय के, श. सं. ८३२ (वि. सं. १६७ = स. ११० ) के, ताम्रपत्र को देखने से अनुमान होता है कि, उसने श. सं. ८१० ( वि. सं. १४५ = ई. स. ८८८ ), और श. सं. ८३२ (वि. सं. १६७ = ई. स. ११० ) के बीच, लाट देश के राज्य को अपने राज्य में मिलाकर, गुजरात के राष्ट्रकूट राज्य की समाप्ति करदी थी ।
(१) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ६, पृ. २८७ ( २ ) इण्डियन ऐक्टिवेरी, मा. १३, १.६६
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