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राष्ट्रकूटों का इतिहास ___गोविन्दराज तृतीय के, श. सं. ७३० ( वि. सं. ८६५ ई. स. ८०८ ) के, ताम्रपत्र में गुजरात विजय का उल्लेव है । इससे अनुमान होता है कि, उसी समय के आस पास इन्द्रराज को लाट देश का अधिकार मिला होगा ।
इन्द्रराज के पुत्र कर्कराज के श. सं. ७३४ के ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि, इन्द्रराजने गुर्जरेश्वर को हराया था । यह घटना शायद गुर्जर नरेश के अपने गये हुए राज्य को फिरसे प्राप्त करने की चेष्टा करने पर हुई होगी । उसी ताम्रपत्रमें इन्द्रराज का, मान्यखेट के राष्ट्रकूट नरेश ( अपने बड़े भाई ) गोविन्दराज तृतीय के विरुद्ध, दक्षिण की तरफ के सामन्तों की रक्षा करना लिखा है । सम्भव है कुछ समय बाद दोनों भाइयों के बीच मनोमालिन्य होगया हो । इन्द्रराज के दो पुत्र थे:-कर्कराज, और गोविन्दराज ।।
___२ कर्कराज (कक्कराज) यह इन्द्रराज का पुत्र, और उत्तराधिकारी था । इसके समय के तीन ताम्रपत्र मिले हैं। इनमें का पहलो श. सं. ७३४ ( वि. सं. ८६६ ई. स. ८१२ ) का है । इसमें दक्षिण के राष्ट्रकूट राजा गोविन्दराज तृतीय का अपने छोटे भाई इन्द्रराज ( कर्कराज के पिता ) को लाट देश का राज्य देना लिखा है, और कर्कराज की निम्नलिखित उपाधियाँ दी हैं:
महासामन्ताधिपति, लाटेश्वर, और सुवर्णवर्ष
कर्कराज ने, गौड और बङ्गदेश विजेता, गुर्जर के राजा से मालवे के राजा की रक्षा की थी। इस ताम्रपत्र में उल्लिखित दान के दूतक का नाम राजकुमार दन्तिवर्मा था।
इसके समय का दूसरा ताम्रपैत्र श. सं. ७३८ ( वि. सं. ८७३ ई. स.८१७) का, और तीसरा श. सं. ७४६ (वि. सं. ८८१ ई. स. ८२४ ) का है।
(१) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ६, पृ. २४२ (२) इण्डियन ऐगिटक्केरी, भाग १२, पृ. १५८ (३) इसमें जिस, वडपद्रक नामक गांव के दानका उल्लेख है वह प्राजकन बड़ौदा के नाम से
प्रसिद्ध नगर है। (४) बर्नल बॉम्बे एशियाटिक सोसाइटी, भाग २०, पृ. १३५ (५) यह ब्राह्मणपल्ली से मिला है।
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