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लाट (गुजरात) के राष्ट्रकूट
४ कर्कराज द्वितीय यह गोविन्दराज का पुत्र था । श. सं ६७६ ( वि. सं. ८१४ ई. स. ७५७ ) का उपर्युक्त ताम्रपत्र इसी के समय का है । कर्कराज द्वितीय राष्ट्रकूट राजा दन्तिवर्मा (दन्तिदुर्ग) द्वितीय का समकालीन था, और इसे उसी ने लाट देश का अधिकार दिया था।
इस ( कर्कराज द्वितीय ) की निम्नलिखित उपाधियाँ मिलती हैं:
परममाहेश्वर, परमभट्टारक, परमेश्वर, और महाराजाधिराज ।
यह राजा बड़ा प्रतापी, और शिवभक्त था। कुछ विद्वान् इसी का दूसरा नाम राहप्प मानते हैं; जिसे दक्षिण के राष्ट्रकूट राजा कृष्णराज प्रथम ने हराया था । सम्भव है, इसी युद्ध के कारण इस शाखा की समाप्त हुई हो । ___इसके बाद की इस वंश के राष्ट्रकूटों की प्रशस्तियों के न मिलने से इस शाखा के अगले इतिहास का पता नहीं चलता ।
द्वितीय शाखा। दक्षिण के राष्ट्रकूट राजा गोविन्दराज तृतीय के इतिहास में लिख आये हैं कि, उसने अपने छोटे भाई इन्द्रराज को लाट देश का राज्य दिया था। उसी इन्द्रराज के वंशजों की प्रशस्तियों में इस शाखा का इतिहास इस प्रकार मिलता है:
यह दक्षिण के राष्ट्रकूट राजा ध्रुवराज का पुत्र, और गोविन्दराज तृतीय का छोटा भाई था। इसके बड़ेभाई गोविन्दराज तृतीय ने ही इसे लाट प्रदेश [ दक्षिणी और मध्य गुजरात ] का स्वामी बनाया था।
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