________________
ἐς
लाट (गुजरात) के राष्ट्रकूट ।
[ वि. सं. ८१४ ( ई. स. ७५७ ) के पूर्व से
वि. सं. १४५ ( ई. स. ८८८ ) के बाद तक ]
प्रथम शाखा
पहले लिखा जाचुका है कि, दन्तिदुर्ग ( दन्तिवर्मा द्वितीय ) ने चालुक्य ( सोलंकी ) कीर्तिवर्मा द्वितीय का राज्य छीन लिया था । उसी समय से लाट ( दक्षिणी और मध्य गुजरात ) पर भी राष्ट्रकूटों का अधिकार होगया ।
सूरत से, श. सं. ६७९ (वि. सं. ८ १४ = ई. स. ७५७ ) का, गुजरात के महाराजाधिराज कर्कराज द्वितीय का, एक ताम्रपत्र मिला है। इससे ज्ञात होता है कि, दन्तिवर्मा (दन्तिदुर्ग ) द्वितीय ने अपनी सोलङ्कियों पर की विजय के समय, अपने रिश्तेदार कर्कराज को लाट प्रदेश का स्वामी बनादिया था ।
इन राष्ट्रकूटों और दक्षिणी राष्ट्रकूटों के नामों में साम्य होने से प्रकट होता है कि, लाट के राष्ट्रकूट भी दक्षिण के राष्ट्रकूटों की ही शाखा में थे । १ कर्कराज प्रथम
इस शाखा का सब से पहला नाम यही मिलता है ।
२ भुवराज
यह कर्कराज प्रथम का पुत्र था ।
३ गोविन्दराज
यह ध्रुवराज का पुत्र था | इसका विवाह नागवर्मा की कन्या से हुआ था ।
(1) जर्नल बाम्बे एशियाटिक सोसाइटी, भा. १६, पृ. १०६
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com