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________________ नं. १६ मेहेता मुरारजी वल्लभभाइनो अभिप्रायः रा. रा. गोविंददास केशवलाल धर्मपुर स्टेटना कारभारी. जत-आपनी सहीनो ता. १०-९-९४ नो पत्र मळयो छे. ते परथी जाणवामां आव्युं छे के "दशराने दिवसे ए स्टेटमां पशुवध थाय छे, ते रूढी शास्त्र रहित छे. एम विद्वानोना बहु मते ठरे तो ते बंध पाडवी.” एम आपना नामदार-महाराणाश्री मोहनदेवजी महाराजश्रीनी इच्छा छे. महाराजानी ए इच्छा अति स्तुत्य छे. स्तुत्य एटला माटे के-पशुनी हिंसा थती अटकाववी ए क्षत्रिओनो खास खरो धर्म छे. निरुक्त शास्त्र के जे वेदनां छ अंगमां एक छे. तेमां क्षत्रि शब्दनी व्युत्पत्ति ए छे के-क्षतात् प्रहारात किलत्रायते क्षत्रिः कोइपण प्राणीने प्रहार-मार-हिंसा थती होय, ते अटकावे ते क्षत्रि. एज व्युत्पत्तिने प्रख्यात पंडित कालीदास पोताना रघुवंश नामे काव्यमा एकस्थले एने मलतुंन पद लखे छे के क्षतात् किल त्रायत् इत्युदनः क्षत्रस्य शब्दो भुवनेषु रूढः ॥ इ०हवे ज्यारे दशराने दिवसे पशुवध थाय छे, त्यारे क्षत्रिना धर्मथी केवल उलटुं कसइनुं कृत्य थाय छे. शास्त्रमा अभयदान सुपात्रदान-अनुकम्पादान-उचितदान-कीर्तिदान ए पांच प्रकारचं दान कयुं छे. तेमां सर्वथी श्रेष्टदान कोइपण प्राणीनो जीव बचाववो ते अभयदान छे. केमके इन्द्रथी कीटादि सर्व प्राणी जीवीतने इच्छे छे. यो दद्यात् कांचनं मेरु, कत्नां, चापि वसुंधराम् ॥ एकस्य जीवितं दद्यात् नहि तुल्यं कदाचन ॥१॥ अर्थ-मेरु पर्वत जेटला सोनाना ढगलानु कोइ श्रीमन्त पुरुष दान करे, अगर चक्रवर्तिराजा आखी पृथ्वीनुं दान करे. तोपण एक पुरुष एक जीवने बचावे तेनी बरोबर थतुं नथी. एम उपरना श्लोक उपरथी नक्की थाय छे. त्यारे दरवर्षे एक जीवनो वध बचशे ए शुं महाराजा मोहनदेवजी तरफ, जेवू तेवू दान थशे? खरं अति मोटुं दान थशे. ___ पशुहिंसा करी तेनुं मांस भक्षण करवू; परस्त्रिविलास करवो के सुरापान करवू एवी प्रेरणा कदि कोइ सच्छास्त्रमा होयज नहि. ए श्रेष्टमत अंगिकार राखीने छूटमात्र व्यवस्था निमित्ते एटली राखवामां आवी छे के-विवाह करी परणेली पोतानी स्त्री जोडे ऋतुकाले स्त्रीसंभोग-यज्ञमांज बलीदान माटे कापेला पशु- मांस भक्षण अने अमुक विधाननी ईष्टीमांन सोमवल्लीपान, एटली रजा छतां दशरानी क्रियाए कांइ यज्ञकर्म नथी, एटले एमां पशुवधनी रना वेदोक्त नीज. एम धारीए के वेदना आधारे यज्ञवत ए क्रिया छे. तो तेमां पण बाध आवे छे. कलियुगमां एवी क्रिया करवानो प्रतिबंध छे. एक दाखलो लइए के-अज ए शब्दनो अर्थ बकरा लई होमता पण अज शब्दनो अर्थ (अनहीं+न =जन्म)=नहीं जन्म एटले त्रण वर्षनी जूनी थयेली डांगर के जे रोपतां उगी शकती नथी ने अजन्मयोनि १२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034575
Book TitlePashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year
Total Pages309
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size24 MB
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