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नहीं तो ते क्रिया पूर्ण थइ एम केम गणाय ? जो ब्राह्मण रजोगुण वृत्तिमा रही देवीनी उपासना करतो होय तो तेने पशुओनी प्रतिकृति लोटनी करवी अने तेनो छेद करवो. अथवा प्रत्यक्ष पशुओने छेको मारी छोडी देवा एम कौलधर्ममां कोइ कोइ जग्याए लखेलुं छे. इत्यलम्
॥ सर्व वेदशास्त्रनुं सारभूत अंग॥ सर्वना नियंता परमात्माए आ त्रिगुणात्मक सृष्टी उत्पन्न करी तेनी स्थितीने अर्थे त्रिगुणात्मक वेद रच्या छे. जेमां सात्विक-राजसी-तामसी-मनुष्यप्राणीओने अनुकूल तेवाज त्रिगुणात्मक ( सात्विक राजसी-तामसी) कर्म दर्शव्या छे. माटे आ कर्ममां हिंसा करवी अधर्मरुप छे. अने हिंसा न करवी ए धर्मरुप छे. छतां परस्पर विरुद्ध मतना प्रमाणोना ग्रन्थो थवानो हेतु अज्ञानछे.
शास्त्री भाइचंद्रनरोचमदासशर्मा-सुरत सगरामपुरा.
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