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________________ गृह्यन्ते यधुवायामाज्यं ऐंद्रपयोऽमावास्यायां ऐंद्रं दध्यमावास्थायां आधान प्रकारेख च द्वादश गृहीतेतेनस्रचं पुरवित्वासप्तवत्या पुर्णाहुतिं जुहोति ॥ आ श्रुतिनो पण तात्पर्य एवो छे के गायना दूधयी अने दही वडे करीने पूर्णाहुति करी यज्ञ संपादन करवो. तेमज जे अशक्त छे तेमणे गायना शींगाडाथी अभिषेक, पुच्छथी तर्पण अने पगना रजथी स्पर्श करी यज्ञ संपादन करवो. पण हिंसाथी यज्ञ करवो नहिं. तेमज ते अध्यायना श्लोक ४ मां का छे के-यज्ञना उपयोगी पशुओमां ने पुरोडास छे ते पवित्र यज्ञने योग्य गणाय छे. तेने माटे त्यां आ प्रमाणे श्रुति छे. त एतउत्क्रांतमेधा अमेध्याः पशवः ॥ तस्मादाहु पुरोडाशसं सर्वलोक्थमिति ॥ अर्थ-यज्ञमां विहित जे जे पशुओ छे, ते अपवित्र अने यज्ञने अयोग्य छे. अने जे पुरोडाश छे ते पवित्र अने यज्ञने योग्य छे. माटेन पुरोडाशनो यज्ञ दर्शनीय अने उत्तम छे. तेमन पुरोडाशना यज्ञथी पशुयज्ञनु प्रयोजन सिद्ध थाय छे. तेने माटे आप्रमाणे श्रुति छे ॥ सर्वेषां वा एष पशूनां मेधेन यजते यः पुरोडाशेन यजते ॥ अर्थ-जे पुरुष पुरोडाशथी यज्ञ करे छे. ते पुरुष अश्व, अनादिक पशुओथी थनारा यज्ञ ( अश्वमेधादिक ) ने करनारा गणाय छे. आ उपरथी कदापि कोइ शंका करशे के पशुयज्ञ पण वेदमां छे खरो, पण तेना समाधानमां एम समजवानुं छे के पशु यज्ञना विधिने कहेनारी श्रतिओ तेना निषेधनी श्रति आगळ गौण थइ जाय छे अने तेओना प्रबल प्रमाणोथी आखर हिंसा विधिनी श्रतिओने निर्बल थावं पडे छे छेवटे आपणा आर्यधर्मना सर्वकर्मशिरोमणी अहिंसाधर्मनो विनय थाय छे. ___ वली अहिंसाने माटे प्रतिपादन करनारी एक कठउपनिषद्नी श्रुति आ प्रमाणे छे ॥ प्लवाद्येते अदढायज्ञरूपा अष्टादशोक्त मवरं येषु कर्म एतच्छ्रेयोयेऽभिनंदन्ति मूढाजरामृत्युंते पुनरवापी यन्ति ॥ अर्थ ॥ पशु हिंसामय यज्ञरूपी ए वहाणो दृढ नथी. जेमां सोल ऋत्विज् अने बे दंपती मली अढारनुं अवश्य कर्म छे. तेने जे श्रेय मानी वखाणे छे. ते मूढ लोको वारंवार फरीथी जरा मृत्युने पाम्या करेछे आ श्रुतिथी पण अहिंसा सिद्ध थाय छे. __ आ गंभीर विषयनी चर्चाने माटे बीना केटलाएक बलवत्तर प्रमाणो आ ठेकाणे आपवा योग्य छे. पण विस्तारना भयथी अने वखतना संकोचथी आटलेथीज आपना त्रीजा प्रश्ननो उत्तर समाप्त करवो पड्यो छे. ____ ४ चोथा प्रश्नना उत्तरमां लखवानुं के कोइ पण शास्त्रमा राजाने अवश्य हिंसा कर्तव्यज छे. अने जो न करे तो अमुक प्रायश्चित छे. तेवू प्रमाण जोवामां आवतुं नथी ते छतां कदापि सकामी थइ तेवा कर्म करवा प्रवते पण तेवा सकामीना कर्मने माटे श्रुति, स्मृति अने पुराणोना तात्पर्यार्थ जोतां सकामी कर्मने धिक्कारेला छे; माटे तेम नहीं करवाथी कोइ पण बळवान् शास्त्रनी आज्ञा तोडी गणाशे नहीं. सकामीना कर्मने माटे भगवद्गीतामां बीजा अध्यायमां श्लोक ४१-४२-४३-४४ मां तेनुं विवेचन करेलुं छे. तेमन श्रीमद्भागवतमां लोके विवाया० ए एकादश स्कंधमां पण बताव्युं छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034575
Book TitlePashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year
Total Pages309
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size24 MB
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