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नासी जाय छे तेओमां केटला एक उपनिषद् भगवद्गीता अने महाभारतना शान्ति पर्वात्तर्गत मोक्ष धर्ममां तेनुं घणुं सारुं विवेचन करेलुं छे. आमां उपनिषद् भगवद्गीता विगेरेना प्रमाण आपीने जो लखवा बेसीए तो घणो विस्तार थइ जाय पण आ ठेकाणे तेमां घणो उपयोगी मोक्षनो एक विषय धारीने हुं नीचे प्रमाणे प्रमाणो आपुं हुं, के जे प्रमाणो आपणा माहात्मा वेदव्यासना मुख कमळी निकळेल छे. अने जेओनी उपर भारतटीकाकार पंडित नीलकंठे श्रुतिओनां प्रमाणोथी टीकाद्वारा ए अहिंसा धर्मने सिद्ध करेलो छे.
अहिंसाने ते प्रतिपादन करे छे. अने तेमां " अनागां " एटले निरपराधी एवं विशेषण आपीने यज्ञ संबन्धी हिंसाविधि करतां अहिंसा विधि श्रेष्ठ छे, एवं साबीत करे छे. कारण के जेतुं मधुपर्कमां गायनुं निरपराधीपणुं छे, तेवुंज यज्ञमां पशुनुं पण निरपराधीपणुं छे. आ उपरथी श्रुतिनो तात्पर्य अहिंसा विधिमा प्रवर्त्ते छे.
आवी रीते जुदा जुदा आचारथी श्रुतिनुं तात्पर्य अहिंसा धर्ममां प्रवर्ताव्युं छे. तेवी रीते केटलां एक सकामिक कर्म के जेओ श्रुतिनुं तात्पर्य बराबर समज्या वगर पोतानी अज्ञानताना प्रौढ प्रतापमां तणाइने वेदना अर्थवादोनुं स्तुतिमां तात्पर्य जाण्या शिवाय हिंसाधर्मने प्रमाण करवाने मथे छे तेओनी निंदाने माटे ए पछीना अध्याय २६३ - श्लोके ६ ठामां आ प्रमाणे लखे छे. ॥ श्लोकः ॥ लुब्धैर्वित्तपरैर्ब्रह्म नास्तिकैः संप्रवर्तितम् || वेदवादानविज्ञाय सत्याभास मिवा नृतम् ॥ अर्थ || हे ब्रह्मन् आस्तिक एटले वेदनं प्रमाण बोलनारा पण तेना तात्पर्यने नहिं जाणनारा विषयलंपट एवा लोभी कर्म जेओए वेदमां कहेला अर्थवादोनुं स्तुति मात्रमां तात्पर्य छे एम न जाणी उपरथी सत्य जेवुं लागतुं पण अविद्यामूळक ब्राह्मणत्वादिनो अध्यास प्रबल होवाथी स्वरूपे खोटुं एवं हिंसात्मक कर्म प्रवर्तान्युं छे जेने माटे श्रुतिमां कहें छे के नीहारेण प्रावृता जल्पाचासुतृप उक्थशासञ्चरन्ति ।। अर्थः- जे कर्म जेओ अज्ञानथी छवाएला तथा अर्थवादना वचनाने सत्य मानी पोताना प्राणनुं पोषण करनारा अने कर्मनुं अनुशासन करवामां तत्पर छे. टीकाभिप्रायसहितं तत् ॥
आवी रीते हिंसाने प्रमाण गणनारा सकामी लोकोनी श्रुति ज पोतेज निंदा करे छे. हवे उपरना प्रमाणोथी हिंसात्मक कर्मनी निंदा करीने ब्रह्मयज्ञनुं स्वरूप कहे छे. ॥ अ० २६३ श्लोक ८ ॥ यदेव सुकृतं हव्यं तेन तुष्यन्तिदेवताः नमस्कारेण हविषा, स्वाध्यायै रौषधैस्तथा ॥ पूजा स्यात् देवतानांहि, यथाशास्त्रनिदर्शनम् ॥ अर्थ - सुकृत वडे मेळवेलुं हव्य उत्तम छे अने तेमनाथी देवताओ संतोष पामे छे. ते हवि त्रण प्रकारनुं छे. एक नमस्कार हव्य, बीजुं स्वाध्याय हव्य, त्रीजुं औषध हव्य, आ त्रण प्रकारना हव्यथी जेवा देवताओ संतोष पामे छे तेवो संतोष पशु विगेरे हिंसात्मक द्रव्यथी पामता नथी. अर्थात् नमस्कार हव्य, वेदाध्ययन रूप हव्य, अने व्रीहियवात्मक हव्यथी यज्ञ करवो पण हिंसाथी करवो नहिं .
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