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३ प्रश्ननो उत्तर. वेदमा, श्रीमद्भागवतमां, श्रीमद्भगवद्गीतामां, शिवाय बीजा सत्शास्त्रोमां हिंसानो तिरस्कारथी निषेध अने अहिंसानो आदरथी विधि बतावेल छे. सर्व मान्य वेदनेविषे हिंसा छे एवी रीते जे लोको कहे छे, ते वेदनाज निंदक छे अने कोइ प्रकरणमां राजस तामस कार्यनी निवृत्ति माटे संकोच रूप वचन होय तेनो पण अर्थ गूढ होवाथी ते यथार्थ रीते कोइ पुरुषो जाणी शक्ता होय एबुं मानी शकातुं नथी. व्याकरणथी वेदनी वाणिना अनेकार्थ थाय छे. तेथी कोइ पण रीते वेदमां हिंसानु प्रतिपादन छेन नहिं माटेन वेदनेविषे ने कोइ हिंसानु प्रतिपादन करे छे ते वेदधर्मना द्रोही छे.
वेद हिंसामय नथी ते विषे एक महाभारतनुं आख्यान मारा सांभळवामां आव्युं छे ते जणावू छु.
एक काळने विषे देवताना राजा इन्द्रे यज्ञ करवा माटे यज्ञशालामा पशु बांधेलां हतां ते समयमां महात्मा सप्त रुषिओ पधार्या अने का के ' हे इंद्र ! तारे आ पशुने शुं करवानुं छे ? " त्यारे इन्द्रे जवाब आप्यो के " वेदमां हिंसामय यज्ञ वर्णवेल छे; ते माटे पशु बांधेल छे.” ते वाक्य सांभळी महाऋषिओए कह्यु. "आ केवी अयोग्य अने निर्दयता भरेली वात छे. वेदमां हिंसानु कह्युज नथी."
ते विषे घणीक तकरार थतां छेवट बे पक्षवालाओए पंच तरी के उपरी अमरवसु नामना राजाने ते शंका निवारणने माटे प्रश्न कर्यो; त्यारे ते वखत राजाए इंद्रनो पक्ष राखवो उत्तम मानी वेदमां हिंसामय यज्ञ छे." एवं वचन काढतां तुरत ते महर्षि पासे उभा छतां पण ते पृथ्वी उपर पड्यो अने तेनी पाताळमां अधोगति थइ ने अन्ते तेने नरकनो आश्रम लेवो पड्यो. __ आ द्रष्टांतथी एम सिद्ध थाय छे के वेदमां हिंसानी प्रवृत्ति छ ज नहिं; एम महात्मा वेदवक्ता भगवान वेदव्यासजी महाभारतना शांति पर्वमां २६५ अध्यायमा लखे छे.
सुरांमत्स्यान्मधुमांस मासवं कृश रोदनम् ॥ धूतैः प्रवर्तितं ह्येतत् नैतदेवेषु कल्पितम् ॥ १॥ महामोहाच्च लोभाच्च लौल्यमेतत् प्रकीर्तितम् ॥ विष्णुमेवा भिजानंति सर्व यज्ञेषु ब्राह्मणाः॥२॥ पायसैः सुमनोभिश्च तस्यास्ति यजनं कृतम् ॥
यज्ञियाश्चैव ये वृक्षा वेदेषु परिकल्पिताः ॥ ३ ॥ उपरना श्लोकोनो अर्थ एवो छे के वेदमां कोइ पशुनी हिंसा कहेली नथी अने प्रकरणोमां प्रति पादननो आभास जोवामां आवे छे. ते वेदनां वचन नथी ते वचन कोइ दुःष्ट पुरुषे रसस्वादने अनुसरी वेदन दूषित करवा नाखेल छे, एम स्पष्ट थाय छे. अने वेदना अर्थ- अत्यंत गूढपणुं छे तेथी जेने जेवी रुचि ते प्रमाणे कोइ कोइ स्थळनो अर्थ न समजवाथी हिंसाना पक्ष, प्रश्न करे छे. माटे वेदमां
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