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अर्थ- सत्यगुणनी प्रवृत्तिवाला उर्द्ध नाम मोक्षगामी छे. अने राजस प्रकृतिवाळा मध्यमां रहे छे. तेमज तामस कर्म करनार अधो एटले नर्कमां जाय छे. वळी गीतामां क्षत्रियना धर्म कह्या छे ते " श्लोक" शौर्य तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम् दान मीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्
भावार्थ - शौर्य, तेज, धृति, चतुराई, युद्धमां न भाग, दान, ईश्वरभाव ए क्षत्रियना स्वाभाविक धर्म छे तेमां क्षत्रिये हिंसा करवी एवं अनुमोदन नथी - अने श्रीमद्भागवतमां स्कंध ४ थाना अध्याय २५ ॥
अहिंसया पारमहंसचर्यया स्मृत्या मुकुंदारमिताग्रासिन्धुना ॥ धर्मे रकमैर्नियमै रनिंदया निरीहया इन्द्रतितिक्षया च ॥
अर्थ - ए प्रकारे सनत्कुमार ऋषिए पृथुराज प्रत्ये उपदेश कर्यो छे. तेमां मोक्षगामी क्षत्रिये उपर प्रमाणे वर्तवुं तेम्मं मुख्य अहिंसा कही छे बाकीनां वचनो केवल सात्विक प्रवृत्तिवालाने ने निवृत्ति धर्मने अनुसरीने कहेला छे. माटे जे केवळ अंध परंपराने वळगी रहे छे, ते अज्ञाननो हेतु छे. ते विषे दृष्टान्त छे के - पूर्वे वेन करीने एक राजा थया हता. तेनां कर्म घणा क्रूर हता तेथी तेणे धर्मना लोपना आग्रह करी सर्व मनुष्यो तथा स्त्रीओ प्रत्येकह्युं जे कोइए पण सत्कर्म कर नहि अने सर्व मने अर्पण करो.” अने ऋषिओ द्वाराए मळेलो उपदेश न मान्यो तेथी ऋषिनो श्राप थतां ते मृत्युने पाम्यो . पछी तेना शरीरमाथी राजा प्रथु थया ते महाकर्म निष्ट अने सत्य धर्म प्रवृत्त थया. पछी तेणे कुळ परंपराए लोकोने पीडा दीधी नहि. आ शैलीने अनुसरीने महाराजा साहेबने धर्म विषे जे रुचि थई छे ते घणी स्तुति पात्र छेमाटे आवेली पत्रिकाना मारी बुद्धि अनुसार प्रश्नोना उत्तर यथामती लखी जणावुं हुं ते स्वीकारी लेशो. १ प्रश्ननो उत्तर.
बलेव तथा दशरा उपर हिंसा करी बलि भोग आपवानुं तंत्रो अने शाक्त शास्त्रमां प्रतिपादन करेलुं छे. अने धर्म सिंधु तथा निर्णयसिन्धु वगेरे शास्त्रना मत गौणपणे कहेल छे. ते पण नवरात्रीना संबंधमां छे. परन्तु बळेव उपर हिंसा करवानुं कोई पण शास्त्रमां आवतुं नथी.
२ प्रश्ननो उत्तर.
जे शास्त्रमां हिंसानुं प्रतिपादन करेल छे, ते शास्त्र घणांज तुच्छ अने गुप्त छे. धर्म सिंधु तथा निर्णय सिन्धुमां तो सूक्ष्म रीते कहेल छे. ते पण शास्त्रमां विशेष मान्य वचन गणातुं नथी. माटे ते शास्त्रो सर्व लोकमां सर्व मान्य नथी तेम बहुमान्य पण नयी अने बळीदान विधि पण अस्त्र शस्त्र विद्यामां विशेषे करीने जोवामां आवे छे. आधुनिक काळमां शस्त्रास्त्र विद्या प्रचलीत थई गएल छे, तेथी ते कर्म निंदित छे. माटे कोइ पण प्रकारे जे शास्त्रमां हिंसानुं प्रतिपादन होय तो तेनो कोइ सत् शास्त्रमां कोइ वचन अर्थ फेरथी जोवामां आवतुं होय तो ते उत्तम पुरुषोने मान्य नथी.
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