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राज्ञि धर्मिणि धर्मिष्टाः पापे पापाः समेसमाः ॥
राजानमनुवर्तते यथा राजा तथा प्रजाः ॥ राजा जो धर्मिष्ट होय तो प्रजा धर्मिष्ट थाय छे, राजा पापी होय तो प्रजा पापी थाय छे, अने राजा जो समान होय तो प्रजा पण समान थाय छे. हरेक रीते प्रनाओ राजाने अनुसरे छे.
प्रश्न चोथानो उत्तर प्रथम प्रश्नना उत्तरमां गतार्थ छे. तो पण लखवानुं के हिंसानो त्याग करवाथी शास्त्रनी आज्ञा तोडी एवं कोइ शास्त्रमा स्पष्ट के अस्पष्ट प्रमाण आपेलुं नथी.
५--प्रश्न पांचमुं पण उपरना उत्तरोथी उत्तरित थइ जाय छे. नामदार, महारणा मोहनदेवजी तरफथी आप लखो छो के " देवीने के देवने भोग आपवा निमित्त पशुवध थतो हतो ने थाय छे. शा कारणथी ते रुढिए प्रवेश को छे?" आ लखाण उपरथीज सिद्ध थाय छे के-राजा ए विष्णुनो अंश छे. अने तेमनाज मुखथी प्रथम पीठिकामां परम मंगळमय प्रभुए आ वचनो बोलाव्यां छे. तो आ इश्वर प्रेरणाथी जणाय छे के पशु हिंसानी क्रिया शास्त्रोक्त मथी पण रूढि छे. हवे आ रुढिनो प्रवेश शा कारणथी थयो-ए शोधवानी के जाणवानी एटली बधी अगत्य नथी. प्रथम कालमा उत्पन्न थयेला यत्किंचित् कारण उपरथी अनेक रुढिओए आ देशमां घर घाल्युं छे. रुढिमां एटलुं जोवानुं छे के आ रूढि हितकारक छे के नुकशान कारक छे. जो नुकशान कारक होय तो तजी देवी. अने आ जंगली रुढि तजी देवाथी राज्यने-राजाना अंगने के प्रजाने कोइ जातनो आपत्तियोग आववानो नथी पण पशु रक्षण थवाथी अर्थशास्त्रना नियम प्रमाणे उलटो संपत्तियोग आवे छे.
६-पशुवध न करवो ए वात सिद्ध थई गई तो हवे तेना बदलामा कोइ क्रिया करवी रहेती नथी. अने दशरा ( पांच महापाप अने पांच उपपाप हरनारी तिथि) ने रोज धर्मसिन्धु अने निर्णय सिन्धु वगेरे ग्रन्थोमां जे अपराजिताना पूजन वगेरे लखेलुं छे ते करवू. एम करवाथीज बलवान् शास्त्रनी आज्ञा पाळी गणाय. धर्मसिन्धुना बीजा परिच्छेदमां उपाध्याय काशीनाथ लखे छे के
अत्राऽपराजिता पूजनं सीमोल्लंघनं शमीपूजनं
देशांतरयात्रार्थिनां प्रस्थानंचविहितम् विजया दशमीने रोज आपराजितानुं पूजन, सीमा- उलंघन, खीनडीनुं पूजन, अने प्रवास करवा इच्छनाराओनुं प्रस्थान ए कर्तव्य छे. आ माहेली क्रिया ए शास्त्रविधि प्रमाणे बराबर कयु कहवाय. __७–पशुओने माटे वध करवाना बदलामां नाक कानने छेको मारवायूँ कोइ जग्याए फरमाव्युं नथी. विना कारण पशुना नाक कानने छेको मारवाथी वध करवानो मननो परिणाम थाय. तेथी नाहक हिंसाना पाप भागी थवाय छे. चोरी न करी होय अने चोरी करवा मननो संकल्प करीए के
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