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प्रजानां हित कामेन त्वगस्त्येनमहात्मना
आरण्याः सर्वदैवत्याः प्रोक्षितास्तपसामृगाः ए वचनोथी जणाव्युं छे के पूर्वे वेदोक्त यज्ञ करनारा लोको यज्ञोमां पशुवधने बढ़ले भातनो पशु बनावी तेनो वध करीने यज्ञनी मूर्ति मानता हता अने प्रजाओगें हित इच्छता. महात्मा अगस्त्य मुनिए तो पशुओथी यज्ञ करीने पण पशुओनो वध कयों नहोतो. परन्तु यज्ञमां पशुओने हानर करीने पछी तेओने छोडी मेल्या हता. महाभारतना टीकाकार नीलकंठे उपरना श्लोकनी व्याख्यामां प्रमाणरूपे पर्यग्निकृतानारण्यानुत्सृजति ए वैदिक श्रुति आपेली छे. श्रुतिनो अर्थ एवो छे के पशुओने यज्ञमां हाजर करी तेओना उपर करवानी बीजी क्रियाओ करीने अंते तेओने जीवतां छोडी मेलवां.
हाल पण केटलाएक अग्निहोत्रीओ चातुर्मास्य वगेरे करे छे, तेओमां घणी जगोए लोटना पशु बनावी तेओनो वध करवामां आवे छे. ए वात सुप्रसिद्ध छे. ___ आ प्रामाणिक ग्रन्थोनां वचनो उपरथी ज्यारे वैदिक यज्ञोमां पण पशुओने छोडी मूकवाथी अथवा लोटना पशुओनो उपयोग करवाथी क्रिया पूर्ण थई गणाय छे, त्यारे नवरात्र अथवा दशरा वेगेरेना दिवसोमां रूढियी चालती अवैदिक क्रियाओ पशुओने छोडी मूकवाथी अथवा लोटना पशुनो उपयोग करवाथी पूर्ण थएली गणीशकाय ए न्यायसिद्धन छे. मनुस्मृतिना पांचमा अध्यायमां
कुर्याघृतपशुं संगेकुर्यात् पिष्टपशुं तथा ।
नत्वेवतुवृथाहन्तुं पशुमिच्छेत् कदाचन । ए श्लोकमां को छे के-पशुनो वध करवाथीन मनने संतोष थाय, एम होय तो घीनो अथवा लोटनो पशु बनावीने काम चलावी लेवू. परन्तु कही पण पशुने नाहक मारी नाखवानी इच्छा करवी नहीं.
मार्कडेय पुराणनो सप्तशती पाठ ( चंडी पाठ ) के जेने तांत्रिक लोको वेद समान गणे छे, तेना बारमा अध्यायमां देवीए देवताओने-कां छे के,
पशुपुष्याईधूपैश्च गन्धदीपैस्तथोत्तमैः विप्राणां भौजनोमैः प्रोक्षणीयैरहर्निशम् अन्यैश्वविविधैर्भोगैः प्रदानैर्वत्सरेणया
प्रीति#क्रियते सास्मिन सकृत्सुचरितेश्रुते॥ एक वर्ष सुधी अहर्निश पशु-पुष्प-अर्ध-उत्तम चंदनादिक तथा दीप एओथी, ब्राह्मण भोजनथी, होमथी, अभिषेकथी, बीजा पण अनेक प्रकारना भोगथी तथा मारा उद्देशथी करवामां आवतां दानोथी
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