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________________ ३५ यावन्ति पशुरोमाणि तावत् कृत्वोह मारणम् । वृथापशुनः प्राप्नोति प्रेत्य जन्मनि जन्मनि ॥ एश्लोकी वृथा हिंसा करनारने अनेक जन्मोमां अनिष्ट फल प्राप्त थवानुं जणाय छे. ४ - राजाओओ दशरा वगेरे. पर्वमा देवीने के देवने पशुनो भोग अवश्य आपवो जोइए. एम देवीपुराण - कालिकापुराण तथा तंत्रो वगेरे अप्रमाणिक ग्रन्थोमां पण लख्युं नथी. त्यारे प्रमाणिक ग्रन्थोमां तो क्यांथीज होय? देवीने के देवने पशुनो भोग नहीं आपवाथी निर्बळ ग्रंथोनी पण आज्ञा त्रुटी नथी त्यारे बलवान् शास्त्रोके जेओमां देवीने के देवने वास्ते एवो पशुवध करवानो इशारो पण कह्यो नथी, तो तेओनी आज्ञा तो क्यांथीज त्रुटे ? धर्मसिंधुना कर्ता के जे निर्णय सिन्धुने अनुसरनारो छे ते पोताना ग्रंथना बीजा परिच्छेदमां नवरात्र प्रकरणमां कहे छे के, क्षत्रियवैश्ययोर्मासादियुतराजस पूजायामप्यधिकारः ॥ सचकेवलं काम्य एव नतु नित्यः निष्कामक्षत्रियादेः सात्विक पूजाकरणे मोक्षादि फलातिशयः । एवं शूद्रादेरपि । संदर्भथी स्पष्ट जणाय छे के क्षत्रियने अने वैश्यने मांस वगेरे पदार्थोथी संयुक्त जप होमवाली रजोगुणी पूजामां पण अधिकार छे. परन्तु ते अधिकार फक्त काम्य छे. एटले मनमां कांइ स्त्रीप्राि वगेरेनी कामना होय तोज तेवी पूजा करवी. पण दरवर्षे तेवीज पूजा करवानुं आवश्यक नथी. जो क्षत्रिय के वैश्य निष्काम रहिने सात्विक एटले मांसादिकना उपयोग वगेरेनी पूजा करे तो तेने मोक्ष वगेरे फलो बहुज प्राप्ति थाय छे. शूद्रादिकने वास्ते पण एमज छे. एटले तेओने पण मांसादिक वाली पूजा करवानी कशी जरुर नथी. मांसादिकथी रहित पूजा करवाथी सर्वोत्तम फल मले छे" निर्णयसिन्धुना कर्ता पण पोताना एज प्रकारना प्रकरणमा साचकाम्या नित्या च ए वाक्यथी प्रमाणे जगावे छे. ५ - देवीने के देवने वास्ते एवी हिंसानी प्रवृत्ति न करवामां आवे तो तेथी राज्यने के प्रजाने के राजाने अंगे कोइ पण प्रकारनो आपत्तियोग आवे अथवा अकार्य कर्यु गणाय एम कोइ पण बलवान् शास्त्रमां लख्युं नथी. बलवान् शास्त्र तो एक तरफ रह्यां परन्तु कोई निर्बल शास्त्रमां पण लख्युं नथी. ६ - एवा पशुवधने बदले बीजी कोइ हिंसा रहित क्रिया करी ते पर्व आराधवामां आवे तो तेथी कोइ पण बलवान् शास्त्रनी आज्ञानो भंग कर्यो गणाय एम नथी केम के कोइ पण बलवान् शास्त्रे एवा पशुवधनी आज्ञा करीज नथी. महा भारतना अनुशासन पर्वनां ११५ मा अध्यायमां श्रूयते हि पुराकल्पे नृणां व्रीहिमयः पशुः । येनायजंतयज्वानः पुण्यलोक परायणाः ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034575
Book TitlePashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year
Total Pages309
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size24 MB
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