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________________ सारी रीते पुष्प, अर्थ, धूप, गन्ध, दीप इत्यादि उत्तम उपचारथी तथा ब्राह्मण भोननी तथा बीजा विविध भोगथी एक वर्ष पर्यंत मारुं आराधन करे अने तेथी नेवी मने प्रीती थाय तेवीज प्रीति आ सप्तशतीरूपे मारुं चरित्र, को ई पुरुष एक ज वार श्रद्धाथी श्रवण करे तेथी थाय छे एम देवीना पोताना वाक्यमां कहेलुं छे. उपरना श्लोकमां पशु शब्दनो मेष विगेरे पशु एवो अर्थ कांई समजवो नहीं पशु ए अव्यय छे अने तेनो सम्यक् सारी रीते एवो अर्थ सिद्धान्तकौमुदीनी टीका मनोरमाना अव्ययार्थ प्रकरणमा भट्टोनी दीक्षिते कीधेलो छे. तेम ज नागोजी भट्ट तथा रामाश्रमे पण सप्तशतीनी टीकामां पशुयथास्यात् तथा जेम ठीक थाय तेम एम अर्थ लई दर्शित करी ते अव्ययना अर्थने क्रियाविशेषण तरीके घटान्यो छे. अर्थात् देवीना आराधनमा मुख्य गणाता चंडीपाठमां पशु हिंसा करी देवीने बली आपवान क्याई लख्युं नथी पण ए त्रयोदशाध्यायात्मक स्तोत्रपाठश्रवणादिकनु घणुं न फल देवीए स्वमुखथी कहयुं छे. आपणे तेनो अनादर करी इतर तंत्रोनुं आचरण करवु ए अनुचित छेन छे. "कलौ चंडीविनायको" एवा वाक्यथी कलियुगमां चंडीनुं प्राधान्य कहेलुं छे ते चंडीमां पशुहिंसानो गंध पण नथी. माटे तादृक् पशुहिंसा नेवां कर्म नहीं करतां इच्छानुसार देवी पूजन करवा माटे पुष्प अर्धादि उपचारो कह्या ते सघला अथवा तेमांना जेटला उपलब्ध होय तेटला उपचारथी पूजन करी तेनां सुचरित सप्तशती, श्रवण, पठन, अर्थानुसंधान पूर्वक करवू, उत्तम घृत पायसादि पदार्थोथी होम करवों अने ब्राह्मणभोजन विगेरे देवीप्रसादजनक कर्मो करवां जेथी देवीनी आज्ञा प्रमाणे तेवा आराधना सर्वांग संपन्न थई गणाय. अने तेथी शास्त्रना भंगनी आज्ञानी शंकातो उठीज शकती नथी. __ ७ प्राणीना नाक कान वगेरेने छेका देवानी कल्पना तो उपहासास्पद जेवी गणवा योग्य छे. कारण के जीव प्राणीमात्र उपर दया राखवी विगेरे मनुप्रभृति महर्षिओनी जागती आज्ञा छे. तो पछी छेका देवा जेवू घोर कर्मज प्राणीने अत्यन्त दुःखनो अनुभव करावे छे, तेढुं कर्म शास्त्रानुमत छे एम केम मानी शकाय. तेवी रीतनी क्रिया करवा- कांइ मान्य ग्रन्थमां कहेलु नथी. एटले आ सर्व चर्चानो सारांश एम समजवानो छे के हिंसा ए पाप कृत्य छे. अने अहिंसाज सर्व मान्य धर्म छे. इति शिवम् हुं विदेश गयो हतो. गई काल रात्रे आव्यो त्यारे मारा पूज्य पिताश्रीए आवेल प्रश्न पत्र वंचाव्यु, उत्तर लखी मोकलवाने बांधेली मुदत तो वीती गई छे, तथापि बधा विद्वानोना उत्तरो साथै छपावी प्रगट करवाना हो तो तेमां एक संख्या वधे तेवा उद्देशथी आ उत्तरपत्र लखी मोकलेल छ. टपालनो टाईम व्यतीत थई जाय छे, तेथी फेर कोपी कर्या शिवाय तमोने तेमनुं तेम मोकलेल छे. जो काइ पण प्रकारना उपयोगमां आवे तो यथेच्छ उपयोग लेशो अने जो अनुपयुक्त गणो तो पार्छ मोकली आपवा अवश्य कृपा करशो कारण के मारी पासे में नकल राखी नथी. हाथीभाई हरिशंकर. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034575
Book TitlePashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year
Total Pages309
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size24 MB
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