________________
मनुष्य अहिंसक (लोकने उपद्रव नहिं करनारा) प्राणिओने, पोता हित करवानी इच्छाथी मारे छे, ते जीवतां सुधी तथा मुवा पछी पण सुखने पामतो नथी. यावन्ति पशुरोमाणि तावत्कृत्वोह मारणं ॥ वृथा पशुन्नः प्राप्नोति प्रेत्य जन्मनि जन्मनि ॥ मनु अध्याय ५-१८. जे पुरुष वृथा पशुने मारे छे. ते जेटलां पशुनां रोम होय छे तेटलीवार ते पशुना हाथथी मरण दुःख पामे छे. इत्यादि श्रुति स्मृतिमां हिंसाना निषेधक तथा निंदक वचनो जथाबध छे. मनुमहात्मा एधर्मना लक्षणमांधृतिःक्षमादमोऽस्त्येयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।।अहिंसा सत्यमक्रोधो दशकंधर्मलक्षणं ॥ ए वाक्यमां धर्मलक्षणांतर्गत धृत्यादिक गुणोमां अहिंसाने गणावेल छे. तेथी हिंसा अधर्म छे. महाभारत शान्तिपर्व अध्याय २७२ मां-तस्यतेनानुभावेन मृगहिंसाकृतस्सदा ॥ तपोमहत्समुच्छिन्नं तस्मादिसा न यज्ञिया ॥१॥ अहिंसा परमो धर्मों हिंसाधर्मस्तथाविधः ॥ सत्यं तेहं प्रवक्ष्यामि योधर्मः सत्यवादिनां ॥आनो अर्थ नीचे मुजब छे. निरन्तर हिंसा परायण ते मुनिनु घणा काळया संचय करेलु तप क्षीण थई गयुं माटे हिंसा करवी ते यज्ञोचित कर्म नथी. अहिंसा परमधर्म छे. अने हिंसा करवी ते परम अधर्म छे. हुं तो सत्यवादिनां धर्म प्रमाणे छे ते यथार्थ कहुं छु. आवी रीते हिंसानो भीष्म पितामहे स्पष्ट अनादर बतावेल छे ए प्रमाणे श्रुति, स्मृति, पुराण, इतिहास विगेरे विशिष्ट प्रमाणबाला ग्रंथोमां हिंसा निषेध करेल छे.
४ हिंसा करवी ते राज्य, अवश्य कर्तव्य छे तेवू कांइ शास्त्र वचन छेन नहि. मृगयाविहार विगेरेमां पण मात्र सिंह व्याघ्रादिक उपद्रव करनार प्राणीनो शिकार करवो कहेल छ पण बीजी हिंसा शास्त्रनी अनुमत नथी. तेम उपरना मनु. अ. ४५ मां श्लोक उपरथी स्पष्ट विदित थाय छे. नच प्राणिवधः स्वर्यः प्राणीहिंसा कांइ स्वर्गमां साधनभूत नथी तेम श्लोक छे. श्रुतिः स्मृतिः सदाचारः स्वस्यच प्रिय मात्मनःएतच्चतुर्विध प्राहुः साक्षाद्धर्मस्य लक्षणम् ॥ धर्मलक्षणमां श्रति-स्मृतिनी साथे सदाचार तथा पोताने जे प्रिय लागे ते ज धर्म गणावेल छे. एटले जे सदाचारबहिष्कृत होय तेम जे आत्मने प्रिय न लागे ते कर्म धर्मलक्षणाक्रान्त थइ शकतुं नथी. अर्थात् तेवी हिंसा न करवाथी बलवान् शास्त्रनी आज्ञा तोडया जेवू कशुं नथी. प्रत्युत धर्मज्ञाननू अनुकरण कर्यु गणाय. स्मृति संग्रहमा कयुं छे के:-श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैवा वधार्यतां । आत्मनः प्रतिकूलानि परेषांनसमाचरेत् ॥ आ वाक्यने अनुसरीने मोक्ष मूलर साहेबे एक महावाक्य पोताना धर्मसंबंन्धी भाषणमा लत्यु छे. Therefore let no one to do others what he would not have done to himself. एबुं कांइ पण कृत्य बीजा प्रते न करवू के जे कृत्य आपणे आपणीज प्रति करवा इछीए नहीं. आ महावाक्य धर्मर्नु रहस्य छे. अर्थात् हिंसा वर्जनार्थक, धर्मशास्त्रना वाक्यने अनुसरवं उचित छे.
५-एवा प्रकारनी हिंसानी प्रवृत्ति नहीं करवाथी राज विगेरेने आपत्तियोग थाय ज नहीं. कारण के जीवने अभयदान देवू, ए सर्व दानथी श्रेष्ट दान थाय छे. जेम महाभारत शांति पर्वमां मोक्ष धर्मना अ० मां कहेल छे. श्लोक नीचे मुजब.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com