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________________ नैव धर्मः सतां देवा यत्र वै वध्यते प्रमुः वायुपुराणे मत्स्यपुराणे च यज्ञो बीजः सुरश्रेष्ठ येषु हिंसा न विद्यते ॥ त्रिवष परमं कालमुषितरप्ररोहिभिः ।। वायुपुराण अने मत्स्यपुराणनो तो एवो सिद्धांत के के जेमां हिंसा नथी ते यज्ञ कहेतां देवता पूजन कहेवाय अने बीजं तो, पेट पूजन कहेवाय. माटे तेमा एम कह्यु के के त्रण वर्षनी नउगे एवी जुनी डांगर प्रमुख धान्य बीजवडे यज्ञ करवो के जेमां हिंसा न होय.. नारदपंचरात्रे चोक्तम्. श्रुतिवदात विश्वस्य जननीव हितं सदा। कस्यापि द्रोहजनकं न वक्ति प्रभुतत्परा ॥१॥ न तच्छास्त्रं तु यच्छास्त्रं वक्ति हिंसामनर्थदाम् यतो भवात संसारः सर्वानर्थपरंपरः ॥२॥ अंतरंगं विजानाति भगवत्याः श्रुतेः स्वयम्। चराचरात्मा भगवान् नापरः कोपि तत्ववित् ॥ ३॥ आत्मवत्सर्वभूतानि आत्मज्योत्येवमबुवम् । भगवान्कथमचैनां हिंसामुपदिशेकचित् ॥ ४॥ श्रुति कहेतां वेद, मातुश्रीनी पेठे निरंतर जगतनुं हित थाय एवुज वचन बोले छे, पण कोई जीव प्राणिमात्रनो द्रोह थाय एवं वचन कहती नथी. केमके ते श्रति प्रभु तत्पर छे एटले जेम कोईनो द्रोह थाय तेम प्रभु कहता नथी. तेम श्रुति पण कोईनो द्रोह थाय ते, वचन बोलती नथी, कोई जीवने दुःख दे, एवं वेद वचन होय तो नहीं हिंसा करवी एवं वेदवचन होयज क्याथी एटले जेमां हिंसा करवानं कडं होय ते वेद वचन न कहेवाय; पण एतो मांसभक्षक एवा राक्षसोनुं वचन कहेवाय ॥ १ ॥ बळी जे शास्त्रमा हिंसा करवानें कडं होय ते शास्त्रज न कहेवाय, अर्थात् एतो अशास्त्र कहेवाय केमके हिंसा अनर्थने आपनारी छे, एटले हिंसा करवाथी आ लोक परलोक संबधी अनेक प्रकारनां कष्ट आवे छ; अने जेनी हिंसा करी छे ते प्राणि तेनुं वेर लवा अनक जन्मसूधी शस्त्रवडे करनारनुं माथु कापे छे. माटे एने शस्त्र कहीए छीए, एम उत्तरार्धमा कह छे. यतः कहतां जे हिंसाथी सर्व अनर्थनी छे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034575
Book TitlePashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year
Total Pages309
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size24 MB
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