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कमां तथा पस्नेकता जरूर तेनुं वैर ले छे, माटे नारदजीए प्राचीनवर्हिष राजाने दिव्यदृष्टि
मापी देखाड्युं छे के हे राजन् अज्ञान पणाथी प्रथम तें जे जे जीव यज्ञमां मारेला छे ते तारो करेलो द्रोह संभारी तेनुं वैर लेवा जो केवी तैयारी करे छे के, जे जे शस्त्रे करीने जे जे प्राणिने मार्यो छे ते ते शस्त्राने घसी उजळां धारवाळां करी तारी वार जुवे छे. जे ए राजा मरण पामी अत्र क्यारे आवे के एनुं छेदन भेदन करी एनुं मांस भक्षण करवा मंडी पडिए . आ प्रकारनुं थशे एवं पोतानुं दुःख संभारी थरथर कंप पामी महाभय पामी हिंसानो त्याग करी नारदजिनो शिष्य थई घणो सुखी थयो. ते कथा श्रीमद्भागवतना चतुर्थ स्कंधमां कही छे के,
भोभो प्रजापते राजन् पशून् पश्य त्वयाध्वरे | संज्ञापितान् जीवसंघान् स्मरंतो वैशसं तव ॥ इत्यादि
भारते मोक्षधर्मे
महाभारतना मोक्षधर्मने विषे जाजली ऋषि अने तुलाधार नामे वणिक तेना संवादमां ( अध्याय ८० मां ) तथा धर्मोछं वृत्तिना संवादमां ( अध्याय ९० मां ) तथा द्युमत्सेन सत्यवादसंवादमां तथा विश्वगीत नामे इंद्र अश्वमेध करवा मांड्यो छे तेमां आवेला महा मोटा ऋषियो अने देवता तेमना संवादमां ( अध्याय १५४ मां ) यज्ञमां केतां देवताना पूजनमां सर्वथा हिंसानो निषेध कर्यो छे. अने ते अंधपरंपराथी चाली आवती हिंसानो त्याग थवाथी राजा प्रजा सर्वे सुखी थाय छे. अने एवा उज्ज्वळ देवताना पूजन विगेरे शुभ कृत्यमां हिंसानी प्रवृत्ति कोणे करावी छे तेना उपर पण त्यांज अध्यायमा ८९ मां लख्युं छे के,
लुब्धैर्वृत्तिपरैराजन्नास्तिकैः संप्रवर्त्तितम् ॥ वेदवादानविज्ञाय सत्याभासमिवानृतम् ॥ १ ॥ तथा - अव्यवस्थितमर्यादैर्विमूढैर्नास्तिकैर्नरैः ॥ संशयात्मभिरव्यक्तैर्हिसा समनुवर्णिता || अध्याय ९२ तस्य तेनानुभावेन मृगहिंसात्मनस्तदा ॥ तपोमहत्समुच्छिन्नं तस्माद्धिंसा न यज्ञिया ।। अध्याय ९९
व्याख्यातश्चायं श्लोको भारतभावदीपे (तट्टीकायां ) चातु धरनीलकंठेन हिंसाशून्यस्य धर्मस्य त्रैष्ठयं वक्तुं हिंस्रयज्ञनिंदार्थो यमध्यायो आरभ्यते तस्य सत्यसंज्ञस्य उञ्छवृत्तित्राह्मणस्य तेन
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