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( अथातो ब्रह्म जिज्ञासा) .....
हवे ब्रह्मज्ञान जाणवानी इच्छा एटले आत्माने अनात्मा जे देहादिक तेनेज जुदा जाणवा. तेनुं कारण एबुंज छे के ते क्षणभंगुर एवा देहनी मांसभक्षणादि पापाचरण करी पुष्टी न करवी. तेनी पुष्टी करनार ने कोई काले आत्मज्ञान उत्पन्न थतुंज नथी. आ. प्रकारको मीमांसा शास्त्रनो सिद्धांत जोतां पण पशु हिंसानो निषेध आवी गयो केमके पापर्नु आचरण करवाथी चित्तनुं अतिशे मलीनपणुं थाय छे अने मेला चित्तवाळाने ज्ञाननो अधिकार नथी. अने ज्ञान विना मोक्ष थतो नथी. माटे पश हिंसामा तथा मांस भक्षणमां जरूर पाप रहेढुंज छे.
न हि मांसं तृणात्काष्ठादुपलाद्वापि जायते ॥ हननादेवजंतूनां जायते नायमस्त्यतः॥१॥
केमके मांस जे ते तृण थकी तथा काष्ट थकी तथा पाषाण थकी पण उत्पन्न यतुं नथी. ए तो जंतुनी हिंसा थकीज उत्पन्न थाय छे ए कारण माटे पाप छे.
अनुद्वेजयतोजीवान भयं कापि विद्यते ॥ भूतद्रोग्धुस्त्विहामुत्र भयं नैव निवर्त्तते ॥२॥
जे पुरुष जे कोई जीव प्राणीमात्रने उद्वेग करतो नथी एटले छेदन भेदनादिक कष्टने करतो नी ते पुरुषने कोई काळे पण भय उत्पन थतुं नथी. जे जे प्राणिनो द्रोह करे छे तेने आ लोकमां भयनी निवृत्ति थतीज नथी. एटले हिंसक पुरुषने आ लोकमां तथा परलोकमां जरूर दुःखनी प्राप्ति थशे. कदापि काले हिंसक पुरुष पूर्वना पुण्यथी सुखी जेवो देखातो हशे तो पण परिणामे तेन परलोकमां अतिशे कष्ट उत्पन्न थशे.
यद्यत्र खादको नस्यान्न तदा घातको भवेत् ॥ न क्रेता नापि विक्रेता मांसस्यातो न भक्षयेत् ॥३॥
जो मांसनो भक्षण करनार न होय तो पशुनो हणनार पण न होय, अने मांसनो लेनार न होय तो मांसनो वेचनार पण न होय माटे मांस भक्षण न करवू.
धनेन क्रयिको हंति खादकश्वोपभोगतः ॥
घातको वधवधाभ्यां मार्कडेयो ब्रवीदिति ॥
मांसने वेचातुं लेनार पुरुष धनवडे पशुने मारे छे एम जाणवू, अमे मांसभक्षक पुरुष तेनो उपभोग करवाथी पशुने मारे छे एम जाणवू, अने पशुघातक पुरुष पशुने मारवाथी तथा बांधवाथी पशुहिंसक छे, एम ए त्रण पुरुष सरखा पातकी छे. ए प्रकारे मार्कंडेय ऋषितुं वाक्य छे.
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