________________
१२६
. बे प्रकारनां न्याय शास्त्र के ते एक प्राचीनन्याय ने बीजुं नवीनन्याय, तेमां गौतम ऋषि प्रणीत सोळ पदार्थ वाची ने काणद ऋषि प्रणीत सात पदार्थ वाची. तेनो पण एवो. सिद्धांत छे के पदार्थज्ञान थकी मोक्षी थाय छे. एटले जे वस्तु जेवी छे तेने तद्गत केतां तेमां रहेला यथार्थ धर्म जाणवारूप ज्ञानथी सर्व दुःखमात्रनो अंत थाय छे नो भावार्थ ऐवो छे के.
आत्मवत्सर्वभूतानि यः पश्यति स पश्यति
पोतानी पेठे सर्व भूत प्राणिमात्रने देखे तेज देखे छे एटले बीजा तो देखे छे तो पण ते अंध जाणवा. केम के जेम कोई पोताने छेदन भेदन करे त्यारे केवुं दुःख थाय छे तेवुं दुःख बीजाने पण छेदन भेदन करवाथी थाय. एम जाणे छे ते जाणकार पुरुषो कहेवाय छे. माटे एवी रीतना जाणपुरुषो निरपराधी पशुने केम दुःख दे नज दे. अने ज्यारे दुःख देवानो निषेधः न्यायशास्त्रने मते थयो तो ते शास्त्रने मते पशुनी हिंसा करवानो निषेध एनी मेळेज आवी गयो.
अने वळी केटलाक वैदीकपुरुषो एम कहे छे के यज्ञमां एटले देवदेवीना पूजनमां जे पशुनी हिंसा करी बलिदान आपीए छीए ते पश स्वर्गे जाय छे अने महाखुखी थाय छे. एवं बोलनार केवळ दांभीक पुरुषो छे केम के, जो एवं बोलनार पुरुष पोताना मनमां एम नक्की जाणे छे जे देवदेवीना बलिदानमां वापरवाथी स्वर्गे जवाय छे तो पोताना अतिशे प्रिय एवां स्त्री पुत्र पुत्री तेमनां गलां कापीने तेमनो बळिदानभां भोग केम आपता नथी. बापडां गरीब निरपराधी पशुने बळात्कारे केम मारी नांखे छे.
माटे ए न्यायशास्त्रनो मत नथी ए तो अन्याय शास्त्रनो मत छे. वळी वे प्रकारनुं मीमांसा शास्त्र हे तेमां पूर्वमीमांसा अने उत्तरमीमांसा तेमां पूर्वमीमांसा जैमिनी ऋषिकृत छे, उत्तरमीमांसा व्यासमुनीकृत छे. तेमां पूर्वमीमांसामां कर्मनुं प्रतिपादन छे, ने उत्तरमीमांसामां ज्ञाननुं प्रतिपादन छे. एबे शास्त्रनो पण एवो अभिप्राय छे के कोई प्रकारना प्राणिनी जाणी जोईने हिंसा न करवी. अने अजाणे हिंसा थाय तो तेनुं प्रायश्चित्त करी शुद्ध थं माटे ते शास्त्रना आरंभमां कहुं छे के,
( अथातो धर्मजिज्ञासा )
हवे धर्म जाणवानी इच्छा एटले अहींसा ए परम धर्म छे. इत्यादि धर्म पाळवाथीचित्तनी शुद्धि थायछे अने चित्तनी शुद्धि थया पछी ते पुरुष ज्ञाननो अधिकारी थायछे; ते ज्ञानानो अधिकारी थयापछी तेने ज्ञानोपदेश करवाने अर्थे उत्तम मीमांसा एटले न्यास सूत्र - प्रमुख वेदांत शास्त्रानो जे उपर कह्यांछे तेनो अधिकारी थायले त्यारे तेने.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com