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वेदमां पशुहिंसा करवानुं कहयुं छे एवं बोलवाथी वसुराजा मोटी अध पांम्यो छ. तेनुं सविस्तर वृत्तान्त स्कंदपुराणमां रहेला वासुदेव महात्म्यना छठ्ठा अध्यायथी जुवो. ए उपरी वसुराजानुं वृत्तांत केवळ स्कंदपुराणमां छे एमज न जाणवुं. वायुपुराणमां छे, मत्स्यपुराणमां छे तथा भारतादि इतिहासना ग्रंथमां पण छे.
अन्नैर्ब्रह्यादिभिर्यज्ञः पयोदधिघृतादिभिः ॥ रसैश्च क्रियतां तेन तृप्तिं यास्यति देवताः ॥ १ ॥ सात्विका देवता प्रोक्तास्तामसा असुरास्तथा ॥ राजसा मनजाः शास्त्रेऽप्यूर्ध्वाधो मध्यवासिनः ॥ २ ॥ मद्यमांसप्रिया दैत्यास्तामसत्वाद्भवंति च ॥ देवास्तु सात्विका ब्रह्मन्नाज्यादिरसप्रियाः ॥ ३ ॥
३–प्रश्न—ते शास्त्र करतां ( हिंसक शास्त्र करतां ) पण जे शास्त्रनुं प्रमाण व बळवान् गणातुं होय एवां कोई शास्त्रमां ते हिंसानो निषेध कर्यो छे के केम.
३—–उत्तर—हिंसासूचक ग्रंथथी अतिशे वधारे प्रमाणरूप बलवान् गणाता शास्त्रमां अतिशे हिंसानो निषेध कर्यो छे.
सर्वोपरि वेदनुं प्रमाण छे ते वेदनो अर्थ अतिशे गहन छे. केमके तेना अर्थमां मोटा पुरुषोने पण मोह उत्पन्न थयो छे माटे ते वेदनो अर्थ मोटा पुरुषोए स्मृतिओमां आण्यो छे. ते स्मृतियोनुं पण अनेकांतपणुं थवाथी वेद प्रवर्तक श्री वेदव्यासऋषिए अतिशे श्रेष्ठ शास्त्रों रहस्यरूप श्रीमद्भागवत नाम पुराण कह्यं तेनुं वाक्य.
निगमकल्पतरोर्गलितफलं वेदरूप कल्पवृक्षथी आ श्रीमद्भागवत नामे फळ उत्पन्न थयुं छे.
ते भागवतमां तो यज्ञमांपण हिंसा न करवी. एवं तात्पर्य जणाववा सारुं प्राचीन बर्हिषी विगेरे राजाओनुं सविस्तर वृत्तांत लख्युं छे.
वळी हिंसा करवी एवं वेदनुं वाक्य नथी. पण निरंतर जे हिंसा करेछे तेना संकोचने अर्थे राजसी तामसी जीवोने कहुं छे के यज्ञमां हिंसा छे ते यज्ञ आ काळमां थवो घणोज कठण छे. केमके एक बळवान् पुरुष हाथमां धनुष्बाण लईने चार दिशाओमां बाण फेंके तथा उंचे पण फेंके एटलो उंचो लांबो फथोलो द्रव्यनो ढगलो करी वापरे त्यारे एक यज्ञ कर्यो कहेवाय, एटलुं द्रव्यतो आ काळमां कोई मोटा राजाने घेस्पण नथी. तो बीजाने घेर होयज क्याथी ! ते माटे भागवतनां वाक्यो.
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