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________________ - श्रीमद् भागवत विषे श्लोक छे ते नीचे प्रमाणे· यत् घ्राणभक्षोविहितः सुरायास्तथा पशोरालभनं न हिंसा एवं व्यवायःप्रजया न रत्याएवं विशुद्धं न विदुः स्वधर्म ॥१४॥ ___अर्थ-शुकदेवजी परीक्षिति राजा प्रत्ये कहे छे के हे राजन् वेदनो कहेवानो तात्पर्य एवो छ के ते सुत्रामणि यज्ञने विषे मदिराने सुंधी लेवी, पण पीवी नहीं. यज्ञने विषे पशुने खड्न अडकाडीने छोडी देवं मार नहीं. 'ऋतु समयना अंतने विषे भार्यानो (स्त्री) अंगिकार करको. बीजा दिवसे जाय तो ईश्वर स्मरण कर एटले संतान थया पछी ईश्वर भजन करवू. एवो उत्तम मनुष्यदेह पामीने शुद्ध धर्मवेद कहे छे तेने छोडीने विपरीत चाले छे ए वास्ते चरकमां जावु पडे छे. अने जे मनुष्य जीवनी हिंसा करे छे ते पशु अवतारने पामे छे. श्रीमद् भागवतनो श्लोक नीचे प्रमाणेद्विषतः परकायेषु स्वात्मानं हरिमीश्वरं ॥ मृतके सानुबंधेऽस्निन्बद्धस्नेहाः पतंत्यधः ॥ १५ ॥ अथ-शुकदेव परीक्षिति राजा प्रत्ये कहे छे के सर्व जीवोने विषे साक्षात् परमात्मा वास करीन रह्या छे. जड पदार्थों जे देवी भैरवादिकने बळिदान आपे छे ने मांसाहार करीने पोते रहे छे ते ज्यारे मरे छे त्यारे तेना कुटुंब सहित नरकमां पडे छे. श्रीमद्भागवतमां कहयुं छे. . येत्वनेवं विदोऽसंतः स्तब्धाः सदभिमानिनः पशून्द्रुह्यंति विस्रब्धाः प्रेत्य खादंति ते च तान् अर्थः-ए प्रकारना जे पामर जीवो छे. अने वेदना अभिप्राय ने जाणता नथी. ते आ प्रमाणे भाषण करेछे. आपणे स्वर्गमां जई यज्ञकरीने त्यां अप्सरा जोडे विहार करीशं. तेओ आ प्रमाणे परस्पर वातो करेछे. अने पशुहिंसाना यज्ञो करेछे. ज्यारे ते यज्ञ करनारा मरेछे त्यारे तेने पशुरूप धारण करवू पडे छे. ते वखते ते पशु जमराज पुरीने विशे तेनुं वेर ले छे. श्रीमद् भागवतना चतुर्थस्कन्धमां पचीसमा अध्यायमा प्राचीनबर्हिराजा प्रत्ये नारद मुनीनुं वाक्य छे. भा भो प्रजापते राजन् पशून्पश्य त्वयाऽध्वरे ॥ संज्ञापितान् जीवसंघान् निघृणेन सहस्रशः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034575
Book TitlePashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year
Total Pages309
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size24 MB
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