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अर्थ-एटले जे कोई पुरुषोए एवो नियम को होय छ के ज्यां पर्यंत जीवत्रु त्यो सूधी दरवर्षे अश्वमेध यज्ञ करवो परंतु मांस न खावू एटले अश्वनुं बलिदान न आप दूधपाकनुं बलिदान आपवं. जे पुरुषो अश्वन बलिदान आपे छ तेना करतां जे नथी आपता तेने अधिक फळ थाय छे. एटले, ए ठेकाणे वेदनुं तात्पर्य शुं छे के जे अश्वमेध यज्ञ करवो ते अश्वने खड्गस्पर्श करीने छोडी देवो दूधपाक विगेरेनुं बळिदान आपg.
श्रीमद् भागवत एकादश स्कंधने विषे कहेलुं छे केलोके व्यवायामिषमद्यसेवा नित्यास्तु जंतोन हि तत्र चोदना ॥ व्यवस्थितिस्तेषु विवाहयज्ञसुराग्रहरासु निवृत्तिरिष्टा ॥ १२॥
अर्थ--एटले वेद शुं कहे छ लोकोने विरे विवाहने विशेष सुख छ आमिष जेमां भक्षण करे छे अने मद्यसेवा अने मदिरा पीवी एज प्रकारना जे जीवो छे ते थकी नित्यमुक्त कहेता जे भगवानना पार्षद अने जिवनमुक्त कहेता जे जडभरत, सुकदेवळ शनकादिक ते अने मुमुक्षु कहेतां जगत्मां रहीने जे इच्छा करे के मारो मोक्ष थाय ए मुमुक्षु जाणवो. अधमनां लक्षण इंद्रिसुख भोगवईं हिंसा करवी अने भूतप्रेतनी उपासना करवी. पामरना लक्षण जे मनुष्यदेह परमात्माए केवल भजन स्मरण करवा आपेल ते परमात्माने छोडीने भैरव ने चंडीनी उपासना करे छे. अने नाना प्रकारनां बलिदान आपे छे ए पाछला बेउ जीवो अधम अने पामर तेमने ए प्रकारे वेद कहे छे. शुं कहे छ ? लग्न कर्या वगर जे विषयसुख भोगवशे तेने दोष लागशे. यज्ञ कर्या वगर जे पशुने मारशे तेने पण दोष लागशे. अने सुत्रामणियज्ञ वगर जे मदिरा पशेि तेने दोष लागशे. ए शामाटे वेद कहे छे के अधम पामर जीवोनी विषयसुख थकी, मांसभक्षण थकी, मदिरापान थकी नित्यनी रुचि छोडववा सारू कयुं छे.
श्रीमद् भागवतना एकादश स्कंधमां बीजं वाक्य छे तेधनं च धमैकफलं यतोज्ञानं सविज्ञानमनुप्रशांति ग्रहेषु युंजंति फलो वरस्य मृत्युं न पश्यति दुरतवीर्यम्॥१३॥
अर्थ-धनरक्षा करवानुं सुफळ ए छे के धर्म करवो. विज्ञानसह वर्तमान ज्ञामर्नु फळ शुं छे के सर्व जीववध थकी निवृत्ति पामो. भगवत भक्ती करो ए करता नथी केवळ संसारने विषे शरीरने लगाडे छे. ते दुरंत वीर्यरूपी एवा संवत्सररूपी काळरूपी परमात्मा जे भक्षणकरी रह्या छे तेने जोता नथी. एवा भावार्थ- वेदनुं वाक्य शुकदेव महाराजा परीक्षिति प्रत्ये अने श्रीकृष्ण उद्धवजी प्रत्ये अने नवयोगेश्वर नीमीराजा प्रत्ये कहेलं. छे.. के ए जीव समान बीजो अधम नथी.
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