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के जे पशुने लावीने मारनारना हाथमां आपे छे, भने खड्ग मंत्रीने मारनारना हाथमां आपे छे अने खड्गनो स्पर्श करीने जे छोडी दे छे ए पण मारनार बरोबर छे. अने ए पशुना मांसने जे खाय छे ए पण मारनार छे, एवा आठ प्रकारना हंता पुरुष जाणवा. हवे दाक्षायन मार्गना देविभक्त छे तेमनां प्रमाण.
अथ बलिदानं ब्राह्मणेन माषादिमिश्रान्नेन कूष्मांडेन वा कार्यं ॥ यद्वा ॥ घृतमयं यवपिष्टादिमयं वा सिंहव्याघ्रन रमेषादिकं ॥ ६ ॥
धर्मसिंधुना बीजा परिच्छेदमां कौस्तुभ ग्रंथना वाक्यो छे. कृत्वा खड्गेन घातयेत् ॥ ब्राह्मणेन पशुमांसमद्यादि. बलिदानात् ब्राह्मण्यतो भ्रष्टता ॥ सकामेन क्षत्रियादिना सिंहव्याघ्रनरमहिषछाग सूकर मृगपक्षिमत्स्यनकुलगोधादिप्राणिखगात्ररुधिरादिमयो बलिर्देयः ॥ ७ ॥
अर्थ -- ब्राह्मणे देवीने बलिदान आपवुं होय तो तेने भूरूं कोळु अथवा अडद बाफीने अथवा अडदनुं पूतळु करीने अथवा घी खांड मेळवीने लोटनो अथवा दूधपाकनो महिष, अज बनावीने तेनुं बालदान आपकुं. परंतु जीवता पशुनो ब्राह्मणे वध न करवो, करे तो थायछे. क्षत्रीयोमां जे सकामीक क्षत्री छे अने वाममार्गमा रहेलाछे एने जीवता पशुनुं बलीदान आपवुं- ए वाक्य वैष्णव धर्ममां नथी. ते जे देवनो भक्त छे तेने लागुछे. परंतु मुख्यवाक्य तो क्षत्रीए कान नाक छेदीने पशुने छोडी देवो ए छे. हिंसा करबी ए नथी. ए वाक्यो देवीना उपासकना छे ने ते मुख्यवाक्य नथी.
वेदना जे मुख्यवाक्य एटले तात्पर्य छे ते कहुंलुं. ए उपरना जे वाक्यो छे ते शामाटे कहेलां छ के मांसभक्षण करवाने जीवनी जे आसक्ति छे ते छोडाववाने वास्ते छे. तनो दृष्टांत जेम कोई पोताना दीकराने करमीनो व्याधि थयो होय तो बाप पोताना दीकरानो रोग माडवा सारु एम करेछे के हे पुत्र ए लीमडाना रसनो वाडको तुं पीइश तो हुं तने खांडेलो लड्डु आपीश. त्यारे दीकरो रसनो वाडको पी जायछे तो कहेछे के लाडु तो हाउ लेई गयो ने लाडु दीकराने आपतो नथी. एज प्रमाणे वेद कहेछे के पशुनुं बलिदान आपनारने पाप नथी ए वचन खांडना लाडु जेवुं छे. अने पशहिंसा न करवी ए लीमडाना रस जेवुं छे. एटले गुणकारी छे माटे पशुहिंसा न करवी.
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